पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/३७

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सूर्यमणि आभाहीन हो जाती है, उसी भांति उसे भी निस्तेज होना पड़ेगा। आज लक्ष्मण अवश्य जयी मेघनाद का वध करेगा और सुलोचना अपने वीर पति के साथ यहां आयेगी। रावणि यहां आकर सदाशिव की सेवा करेगा और सुलोचना को मैं अपनी सखी बनाकर सन्तुष्ट करूंगी।"

आठ

प्रभात की उषा का उदय हुआ। लंका के चतुष्पथ पर राजप्रासाद के प्रांगण में राक्षस सेना सज्जित होने लगी। धौंसे बजने लगे। हाथी, घोड़े, पैदल खड़े हो गये। सेनानायक सबको आज्ञा प्रदान करने लगे। विरूपाक्ष तालजंघ सेनापति ने सेना का व्यूह निर्माण किया, रथों की पंक्तियां अलग खड़ी की गयीं। खिड़कियों से कुलवधू सैनिकों पर पुष्प और लाजा वर्षा करने लगीं। हाथी चिंघाड़ने लगे। मन्दिरों में प्रभाती बजनी आरम्भ हो गई। तोरण पर भैरवी अलापी जा रही थी। पुरवासी लोग इधर-उधर आ-जा रहे थे। चार राक्षस नागरिक चतुष्पथ पर खड़े होकर परस्पर बातें करने लगे।

एक बोला, "चलो, जल्दी करो, प्राचीर पर चढ़ जाएं, जिससे आज का अद्भुत युद्ध देखने को मिल जाए, फ़िर स्थान नहीं मिलेगा।"

दूसरे ने कहा, "अभी ठहरो, युवराज वैश्वानर की पूजा में रत हैं। वे अभी आकर समस्त सैन्य का निरीक्षण करेंगे। देखते नहीं, महानायक तालजंघ कैसी तत्परता से व्यूह रचना कर रहे हैं!"

तीसरे ने कहा, "आज भिक्षुक राम का निस्तार नहीं है। महाराज विभीषण भी अपने कर्मफल को आज भोगेंगे।"

चौथे ने कुछ सोचकर कहा, "अरे, मायावी राम तो मरकर भी जी उठता है। देवगण उसके पक्ष में हैं।"

पहले ने उत्तर दिया, "तो क्या हुआ? देवराज इन्द्र के वज्र को व्यर्थ करने वाले युवराज आज कालपुरुष की भांति देवताओं का सब प्रयत्न व्यर्थ करेंगे। चलो प्राचीर पर चलें।"

"प्राचीर पर चढ़कर क्या होगा? युवराज तो पल-भर में ही राम-लक्ष्मण का नाश कर डालेंगे। पृथ्वी पर कौन है जो उनके भीषण बाण से बच सके?"

"सत्य कहते हो, जैसे अग्नि सूखी घास को भस्म करती है, उसी भांति युवराज शत्रु का संहार करते हैं। उन-सा योद्धा पृथ्वी पर और कौन है?"

"देखते रहो, एक मुहूर्त में वह अधम विभीषण को वांधकर ले आते

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