आश्विन से प्रथम सीता की खोज नहीं हुई। यह खोज कोई आसान भी न थी। जब सुग्रीव ने सीता की खोज में वानर दल रवाना किया, तो बड़ी- बड़ी नदियों तथा द्वीपों और प्रान्तों के नाम गिनाकर यूथ भेजे थे। देशों की परिगणना करते हुए उन्होंने शक, पुलिन्द, वनभूमि, कलिंग, सुम्भ, विदेह, मलय, काशी, कोसल, मगध, दण्डकूल, बग, अंग, उड़ीसा, चेदि, दशार्ण, ककुर, भोज, पाण्डय, विदर्भ, अष्टिक, माहिष्मती, उण्ड्र, द्रविड़, पुण्ड्र, केरल तथा पर्वतों में यामुन, मलय, विन्ध्य, हिमाचल, नदियों में कौशिक, शोष्ठा, यमुना, गंगा, सरयू, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी और समुद्र, मध्यस्थ देशों और द्वीपों का नाम लिखा था। इन द्वीपों, पर्वतों और नदियों को देखते ही अनुमान किया जा सकता है कि सुग्रीव ने असाधारण साज-सज्जा से तैयारी करके वानरों के यूथ देश-देशान्तरों को भेजे होंगे। वर्षा ऋतु के बाद दशहरा ही एक ऐसा पर्व हो सकता था। सो सम्भव है कि दशहरा के दिन ही यह खोजी दल रवाना हुआ हो। कुछ लोगों का मत है कि विजयादशमी के दिन राम ने विजय की यात्रा की थी।
हनुमान ने कुछ खोजी दल प्रथम ही भेज दिए थे। जिस पर सुग्रीव ने हनुमान से कहा था, "तुमने तीव्रगति वाले दूत भेजे सो ठीक किया, परंतु अब और भी शीघ्रता से बड़े-बड़े दूतों को भेजो। उनमें जो दस दिन में लौटकर न आएगा, उसे मैं प्राणदण्ड दूंगा।" पीछे उसने एक मास की अवधि देकर सेनापतियों को ही भेजा, जिसमें स्वयं हनुमान भी थे। इस प्रकार दो मास खोज में गये, माघ में सैन्यदल चला। एक मास में समुद्र पार किया। सम्भवतः चैत्र या वैशाख में युद्ध हुआ, जो चौरासी दिन चला, जिनमें सत्तर दिन राक्षस सेनानायक लड़े। सात दिन तक रात-दिन निरन्तर राम-रावण युद्ध हुआ। अनुमान है कि रावण-निधन वैशाख कृष्णा चतुर्दशी या चैत्र कृष्णा अमावस्या को हुआ।
राम का जन्म चैत्र शुक्ला नवमी को हुआ। अठारह वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ। विवाह के बाद बारह वर्ष अयोध्या में रहे, तीस वर्ष की अवस्था में वनवास हुआ। वनवास काल में दस मास चित्रकूट में रहे बारह वर्ष पंचवटी में निवास किया। लगभग दस मास का समय राम-रावण युद्धाभियान में व्यतीत हुआ। पन्द्रहवें वर्ष के ठीक प्रथम दिन राम नन्दिग्राम में भरत से मिले। उस समय चौवालीस वर्ष की उनकी आयु थी।
युद्ध के बाद सीता की अग्नि परीक्षा तथा अयोध्या लौटने पर धोबी के
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