पृष्ठ:राजा भोज का स्वप्ना.pdf/९

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प्रसन्न हुआ और कहा कि सुन मेरी अमलदारी भर में जहां जहां सड़कहै कोस कोस पर कूए खुदवाके सदावर्त बैठादे और दुतर्फा पेड़ भी जल्द लगवादे इसी अर्से में दानाध्यक्ष ने आकर आशीर्वाद दिया और निवेदन किया कि धर्मावतार वह जो पाँच हजार ब्राह्मण हरसाल जाड़ों में रजाई पाते हैं सो डेवढ़ी पर हाजिर हैं राजाने कहा अक पाँच के बदले पचास हजार को मिलाकरे और रजाई की जगह शाल दुशाली दिया जावे दानाध्यक्ष दुशालों के लाने के वास्ते तोशेरखाने में गया इमारत के दारोगा ने आकर मुजरा किया और खबर दी कि महाराज वह बड़ा मन्दिर जिसके जल्द बना देने के वास्ते सौर से हुक्म हुआ है आज उसकी नेव खुदगई पत्थर गढ़े जाते हैं और लुहार लोहा भी तैयार कर रहे हैं महाराज ने तिउरियां बदल कर उस दरोगा को खूब घुरका और कहा कि मुर्ख वहां पत्थर और लोहे का क्या काम है बिलकुल मन्दिर संगमरमर और सङ्गमूसासे बनायाजावे