पृष्ठ:राजा भोज का स्वप्ना.pdf/८

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अपने फूल से शरीर को कांटा बना दिया जितना मैंने दान दिया उतना तो कभी किसी के ध्यान में भी न आया होगा जिन जिन तीर्थों की मैंने यात्रा की वहां कभी परंदे ने पर भी न मारा होगा मुझ से बढ़कर अब इस संसार में और कौन पुण्यात्मा है और आगे भी कौन हुआ होगा जो मैं ही कृतकार्य नहीं तो फिर और कौन होसक्ता है मुझे अपने ईश्वर पर दावा है वह मुझे अवश्य, अच्छी गति देवैगा ऐसा कब होसक्ता है कि मुझे भी कुछ दोष लगेगा इसी अर्से में चोबदार पुकारा चौधरी इन्द्रदत्त निगाह रूबरू श्रीमहाराज सलामत भोजने आंख उठाई दीवानने साष्टांग दण्डवत् की फिर मम्मुख आ हाथ जोड़ यों निवेदन किया पृथ्वीनाथ वह इंदारा सड़क पर जिसके बास्ते आपने हुक्म दिया था बनकर तैयार होगया और वहां वह आमका बाग भी लग गया जो पानी पीता है आपको अशीश देताहै और जो उन पेड़ोंकी छाया में विश्राम करता है आपकी बढ़ती दौलत मनाता है राजा अति