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लिये ब्राह्मणों को लाख लाख रुपया उठा देता और एक-एक दिनमें लाख लाख गोदान ढे डालता सवालक्ष ब्राह्मणों को षट्रस भोजन करा के तब आप खाने को बैठता तीर्थ यात्रा स्नान दान और व्रत उपवास में सदा तत्पर रहता बड़े बड़े चांद्रायण कियेथे और बड़े बड़े जूते गल पहाड़ छान डाले थे एक दिन शरद् ऋतु में संध्याके समय सुंदर फुलवाड़ीके बीच स्वच्छ पानीके कुंडके तीर जिसमें कुमुद और कमलों के दरमियान जलपक्षी कलोलैं कररहे थे रत्न जटित सिंहासन पर कोमल तकिये के सहारेसे स्वस्थ चित्त बैठा हुआ.महलों की सुनहरी कलशियां लगी हुई संगमरमर की गुमजियों के पीछे से उदय होता हुआ पूर्णिमा का चांद देख रहा था और निर्जन एकान्त होनेके कारण मनही मन में शोचता कि अहो मैंने अपने कुल को ऐसा प्रकाश किया जैसे सूर्य से इन कमलों का विकास होता है क्या मनुष्य और क्या जीव जन्तु मैंने अपना साराजन्म इन्हीं के भला करने में गवाया और व्रत उपासं करते २