पृष्ठ:राजा भोज का स्वप्ना.pdf/३५

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(३०)

इन कामों में भी ऐसा कोई नहीं दिखलाई देता जिसके करने से यह पापी मनुष्य पवित्र पुण्यात्मा हो जावे वह कौनसा जप तप तीर्थयात्रा होम यज्ञ और प्रायश्चित्त है जिसके करने से हृदय शुद्ध हो और अभिमान न आजावे आदमी का फुसला लेना तो सहज है पर उस घट घट के अन्तर्यामी को कोई क्यों कर फुसलावे जब मनुष्य का मनही पापसे भराहुआ है तो फिर उससे पुण्य कर्म कोई कहां बनावे पहले आप उस स्वप्नको सुनिये जो मैंने रातको देखा है तब फिर पीछे वह उपाय बतलाइये जिस्से पापीमनुष्य ईश्वर के कोपसे छुटकारा पाताहै॥

निदान राजाने जो कुछ रात को स्वप्न में देखा था सब जौंकांजौं उस पण्डित को कह सुनाया पण्डित जी तो सुनतेही अवाक होगये शिरझुका लिया राजाने निरास होकर चाहा कि तुषानल करके जल मरे पर एक परदेशी सा आदमी जो उन पण्डितोंके साथ बिना बुलाये घुस आया था सोचता विचारता उठकर खड़ा हुआ और धीरे से यों निवेदन किया कि महाराज, हम लोगों का कर्ता ऐसा दीनबंधु कृपासिंधु है कि अपने मिलने की राह पाने की सच्चे जी से मदद माँगिए। हे पाठकजनो, क्या तुम भी भोज की तरह ढूँढ़ते हो और भगवान् से उसके मिलने की प्रार्थना करते हो? भगवान् तुम्हें शीघ्र ऐसी बुद्धि दे और अपनी राह पर चलावे, यही हमारा अंतःकरण से आशीर्वाद है। जिन ढूँढ़ा तिन पाइया गहरे पानी पैठ।