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अपने घरकी राह लीजिये क्या आप फिर उस पर्दे को डाला चाहतेहैं जो सत्यने मेरे साम्हने से हटाया और बुद्धिकी आँखों को बंद किया चाहते हैं जिन्हें सत्य ने खोला उस पवित्र परमात्मा के साम्हने अन्याय कभी नहीं ठहर सक्ता मेरे पुण्य का जामा उसके आगे निरा चीथड़ा है यदि वह मेरे कामों पर निगाह करेगा तो नाश हो जाऊँगा मेरा कहीं पता भी न लगेगा इसमें दूसरा पंडित बोल उठा कि महाराज परब्रह्म परमात्मा तो आनन्द स्वरूप है उसकी दया के सांभर का कब किप्ती ने किनमरा पाया है वह क्या हमारे इन छोटे छोटे कामों पर निगाह किया करता है एक कृपादृष्टि सेसाराबेड़ा पार लगा देताहै राजाने आँखें दिखला के कहा कि महाराज आप भी अपने घर को सिधारिये आपने ईश्वर को ऐसा अन्याई ठहरा दिया कि वह किसी पापी को सजाही नहीं देता सब धान बाईसपसेरी तोलता है मानो हर भोंग पुरका राज करता है इसी संसार में क्यों नहीं देख लेते जो आम