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आगे अब यह सारा खटराग सुपना मालूम होता उस सुपने के स्मरणही से मेरे रोंघटे खड़े हुये जातेहैं, राजाके मुखसे हुक्म निकलने की देर थी चोबदारोंने तीन पण्डितों को जो उस समय वसिष्ठं याज्ञवल्क्य और वृहस्पति के समान प्रख्यात थे बात की बात में राजा के साम्हने ला खड़ा किया॥ राजा का मुँह पीला पड़ गया था माथे पर पसीना हो आया था पूछा कि वह कौनसी उपाय है जिससे यह पापी मनुष्य ईश्वर के कोप से छुटकारा पावे उनमेंसे एक बड़े बड़े पंडितने आशीर्वाद देकर निवेदन किया कि धर्मराज धर्मावतार यह भय तो आपके शत्रुओंकी होना चाहिये आप से पवित्र पुण्यात्मा के जीमें ऐसा सन्देह क्यों उत्पन्न हुआ आप अपने पुण्य के प्रभाव का जामा पहन के बे खटके परमेश्वर के साम्हने जाइये न तो वह कहीं से फटा कटा है और न किसी जगह से मैला कुचैला हुआ है॥ राजा क्रोध करके बोला कि बस अधिक अपनी वाणी को परिश्रम न दीजिये और इसी दम