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कालका मेघ गरजा दीवार मन्दिर की चारों ओर से अड़ अड़ाकर गिरपड़ी गोया उसपापी राजा को दबाही लेना चाहती थी और उस अहङ्कार की मूर्तिपर ऐसी एक बिजली गिरी कि वह धरती पर औंधे मुहँ आपड़ी त्राहि मां त्राहि मां मैं डूबा मैंडूबा कहके भोज जो चिल्लाया आँख उसकी खुल गई और सुपना सुपना होगया। इस अर्से में सबेरा होगया था आस्मान के किनारों पर लाली दौड़ आई थी चिड़ियाँ चह चढ़ा रही थीं एक ओर से शीतल मन्द सुगन्ध पंवन चलीबाती थी दूसरे ओर से बीन और मृदङ्ग की ध्वनि बन्दीजन राजा का यश गाने, लगे हरकारे हर तरफ़ काम को दौड़े कमल खिले कमोद कुम्हलाये राजा पलंगसे उठा पर जी भारी माथा थामे हुये न हवा अच्छी लगती थी न गाने बजाने की कुछ सुध बुध थी उठतेही पहले यह हुक्म दिया कि इस नगरमें जो अच्छे से अच्छे पण्डित हों जल्द उनको मेरे पास लाओ मैंने एक सुपना देखा है कि जिसके