पृष्ठ:राजा भोज का स्वप्ना.pdf/३०

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तो बतला कि भगवान इस मन्दिर में बैठा है यदि तूने भगवान् को इस मन्दिर में बिठाया। होता तो फिर वहअशुद्ध क्यों रहता जरा आंख उठाकर उस मूर्ति को तो देख जिसे तू जन्म भर पूजता रहा है राजाने जो आँख उठाई तो क्या देखता है कि वहां उसबड़ी ऊँची बेदी पर उसीकी मूर्ति पत्थर की गढीहुई रक्खीहै और अभिमान की पगड़ी बाँधे हुये सत्यने कहा किमूर्ख तूने जो काम किये केवल अपनी प्रतिष्ठा के लिये इसी प्रतिष्ठा प्राप्त होने की सदा तेरी भावना और इच्छा रही और इसी प्रतिष्ठा के लिये तूने अपनी आप पूजा की रे मूर्ख सकल जगत् स्वामी घट घट अन्तर्यामी क्या ऐसे म्जरूपी मन्दिरों में भी अपना सिंहासन बिछनेदेता है जो अभिमान और प्रतिष्ठा प्राप्तिकी इच्छा इत्यादि से भराहै ये तो उसकी बिजली पड़ने के योग्य है सत्यका इतना कहना था कि सारी पृथ्वी एकबारगी कांपउठी मानो उसी दम टुकड़ा टुकड़ा हुआ चाहतीथी आकाशमें ऐसा शब्द हुआ कि जानो प्रलय