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उन सब कामों को तो सदा याद रखताथा और उनका चरचा किया करता जिन्हें वह अपनी समझ में पुण्य के निमित्त किये हुये समझा हुआथा पर उन कर्तव्य कामोंका कभी टुकभी सोच न किया जिन्हें अपनी उन्मत्तता में अचेत होकर छोड़ दियाथा सत्य बोला राजा अभी से क्यों घबरा गया था इधर आ इस दूसरे आईने में मैं तुझे अब उन पापों को दिखलाता हूं जो तूने अपनी उमर में किये हैं राजाने हाथ जोड़े और पुकारा के बस महाराज बस की- जिये जो कुछ देखा उसी में मैं तो मिट्टी हो गया कुछ भी बाक़ी न रहा अब आगे क्षमा कीजिये पर यह तो बतलाइये कि आपने यहां आकर मेरे शर्बत में क्यों जहर घोला और पकी पकाई खीरमें साँपका विष उगला और आपने मेरे आनन्द को इसी मन्दिर में आके नाश में मिलाया जिसे मैंने सर्वशक्तिमान भगवान् के अर्पण किया है चाहे जैसा वह बुरा और अशुद्ध क्यों न हो पर मैंने तो उसीके निमित्त बनाया है सत्य ने कहा ठीक पर यह