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लगे हैं उनकी भी हिसाबले॥ राजा उस आइने में क्या देखता है कि जिस प्रकार बरसात की बढ़ी हुई किसी नदी में नल के प्रवाह बहे जाते हैं उस प्रकार अनगिन्त सूरतें एक ओर से निकलती और दूसरी ओर अलोप होती चली जातीहैं कभी तो राजाको वे संब भूखे औरनंगे इस आईने में दिखलाई देते जिन्हें राजा खाने पहिने को देसक्ताथा पर न देकर दानका रुपया उन्हीं हटे कट्टे मोटे मुष्टण्ड खाते पीते हुओं को देता रहा जो उसकी खुशामद करते थे या किसी की सिफारिश ले आते थे या उसके कार्दारों को घूस दकर मिला लेते थे या सवारी के समय माँगते माँगते और शोर गुल मचाते मचाते उसे तंग करडालते थे या दार में आकर उसे लज्जा के भँवर में गिरा देते थे या झूठा छापा तिलक लगाकर उसे मकर के जाल में फंसा लेते थे या जन्मपत्र में मले बुरे ग्रह बतला कर कुछ धमकी भी दिखलाते थे या सुन्दर कवित्त और श्लोक पढ़कर उसके चित्तको भुलाते थे कभी वे दीन दुखी दिख-