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है पर उस घट घट निवासी अनन्त अविनासी को एक एक बात जो तरे मुहँ से निकली है याद है और याद रहेगी उसके निकट भूत और भविष्य दोनों वर्तमान सा है॥ भोजने शिर न उठाया पर उसी दबी जबान से इतना मुहँसे और निकाला कि दाग तो दागं पर ये हाथ २ भरके गढ़े क्यों कर पड़ गये और सोने चांदी में मोर्चा. लगकर ये मसाले कहां से दिखलाई देने लगे॥ सत्यने कहा कि राजा क्या तने कभी किसी को कोई लगती हुई बात नहीं कही अथवा बोली ठोली नहीं मारी अरे नादाम यह बोली ठोली तो गोली से अधिक काम कर जाती हैं तंतो इन गढ़ोंही को देख कर रोताहै पर तेरे ताने तिसने तो बहुतों की छातियोंसे पार होगये जब अहंकारका मोर्चा लगा तो फिर यह दिखलावे का मुलम्मा कब तक ठहर सक्ताहै स्वार्थ और अश्रद्धा का ईंट चना प्रकट हो पाया राजा को इस अर्से में चिमगादड़ोंने बहुत तंग कर रखा था मारेबके सिर फंटा जाता था भनगे और फतंगों से