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सत्य बोला कि राजा ये दाग जो तुझे इस मन्दिर में दिखलाई देते हैं वे दुर्बचन हैं जो दिनरात में सैकड़ों बार तेरे मुख से निकले याद तो कर तेरे क्रोध में आकर कैसी कड़ी कड़ी बातें लोगों को सुनाई हैं क्या खेलमें और क्या अपना अथवा दूसरे का चित्त प्रसन्न करने को क्या रुपया बचाने अथवा अधिक लाभ पाने को और क्या दूसरे का देश अपने हाथ में लाने अथवा किसी बराबर वाले से अपना मतलब निकालने और दुश्मनोंको नीचा दिखानेके लिये कितने झूठ बोला है अपने ऐब छिपाने और दूसरे की आंखों में अच्छा मालूम होने अथवा झूठी तारीफ़ पाने के वास्ते कैसी कैसी शेख़ियाँ हाँ की हैं और किस किस तरह की लन्तरानियाँ मारी हैं अपने को औरों से अच्छा और औरोंको अपने से बुरा दिखलाने को कहांतक बातें बनाई हैं तुझे तो अब कुछ भी याद न रहा बिल्कुल एकबारगी भुलादिया पर वहाँ वह तेरे मुहँ से निकलतेही बही में दर्ज होगया तू इन दाग़ों के गिनने में असमर्थ