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परिश्रम व्यर्थ न जावेगा राजा उस सत्य के पीछे खिंचा खिंचा फिर मन्दिर के अन्दर घुसा पर अब तो उसका हालही कुछ से कुछ होगयो सच मुच स्वप्ने का खेलसा दिखलाई दिया चाँदी की सारी चमक जाती रही सोने की बिल्कुल दमक उड़गई दोनों में लोहे की तरह मोर्चा लगा हुआ और जहाँ जहाँ से मुलम्मा उड़गया था भीतर का चूना और ईट कैसा बुरा दिखलाई देता था जवाहिरों की जगह केवल काले काम दाग रह गयेथे और संगमर्मर की चट्टानों में हाथ हाथ भर गहरे गढ़े पड़गयेथे॥ राजा यह देखकर भैचक सा रह गया औसान जाते रहे हक्का बक्का बन गया धीमी आवाज से पूछा कि यह टिड्डी दल की तरह इतने दाग इस मन्दिर में कहाँ से आये जिधर मैं निगाह उठाताहूं सिवाय काले काले दागों के और कुछ भी नहीं दिखलाई देता ऐसा तो छीपी छीट को भी नहीं छापेगा और न शीतला से बिगड़ा हुआ किसी का मुखड़ा देख पड़ेगा।