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गया और उन्हें उसी ठौर दबा रक्खा तड़फा जरूर किये पर उड़ने जरा भी न दिया सत्य बोला भोज बस यही तेरे पुण्य कर्म्म हैं इन्हीं स्तुति बंदना औ बिनती प्रार्थना के भरोसे पर त स्वर्ग में जाया चाहता है सूरत तो इनकी बहुत अच्छी है पर जान बिल्कुल नहीं तूने जो कुछ किया केवल लोगों के दिखलाने को जीसे कुछ भी नहीं जो तू एक बार भी जीं से पुकारा होता कि दीनबन्धु दीनानाथ दीनहितकारी मुझ पापी महा अपराधी डूबते हुये को बचा और कृपादृष्टि कर कर तो वह तेरी पुकार तीरकी तरह तारों से पार पहुँची होती राजा ने शिर नीचा कर लिया उत्तर कुछ न बन आया सत्यने कहा कि भोज अब या फिर इस मंदिर के अंदर चलें और वहां तेरे मनके मन्दिर को जांचें यद्यपि मनुष्य के मनके मंदिर में ऐसे ऐसे अँधेरे तहखाने और तलघरे पड़े हुये हैं कि उनको सिवाय सर्वदशी घट घट अंतर्यामी सकल जगत् स्वामीके और कोई भी नहीं देख अथवा जांच सक्ता तौ भी तेरा