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सत्यने कहा कि राजा दीनबन्धु करुणासागर श्रीजगन्नाथ जगदीश्वर अपने भक्तों की बिमती सदा सुनता रहता है औ जो मनुष्य शुद्ध हृदय और निष्कपट होकर नम्रता और श्रद्धा के साथ अपने दुष्कर्मों का पश्चात्तापं अथवा उनके क्षमा होनेका टुक भी निवेदन करता है ग्रह उसका निवेदन उसी दम सूर्य चांद को बेधंकर पार होजाता है फिर क्या कारण कि यह सब अब तक मंदिर की मुड़ेरही पर बैठे रहे। आचल देखें तो सही हम, लोगों के पास जाने पर आकाशको उड़जाते, यां उसी जगह पर पिरकट कबूतरों की तरह फड़ फड़ाया करते हैं भोज डरा लेकिन सत्य का साथ न छोड़ा जब मुड़ेर पुर पहुंचा तो क्या देखता है कि बह सारे जानवर जो दूरसे ऐसे सुंदर दिखलाई देते थे मरेहुये पड़े हैं पंख नुचे खुचे और बहुतेरे बिल्कुल सहये। यहां तक कि मारे बदबू के राजा का शिर भिन्ना उठा दो एकने जिन में कुछ दम बाक़ी था जो उड़ने का इरादा भी किया तो उनका पंख पारेकी तरह भारी हो