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कहा है कि मनुष्य मनुष्य के कर्मों से उसके मनकी भावनाका विचार करता है और ईश्वर मनुष्य के मन की भावना के अनुसार उसके कर्मोका हिसाब लेताहै तू अच्छी तरह जानता है कि यही न्याय तेरे राज्य की जड़ है जो न्याय न करे तो फिर यह राज्य तेरे हाथ में क्यों कर रहसके जिस राज्य में न्याय नहीं वह तो बेनेव का घर है बुढ़िया के दाँतों की तरह हिलता रहता है अब गिरा तब गिरा मूर्खतूही क्यों नहीं बतलाता कि यह तेरा न्याय स्वार्थ सुधारने और सांसारिक सुखपानेकी इच्छा से है अथवा ईश्वर की भक्ति और जीवों की दया से भोज के माथे पर पसीना हो आया आखें नीची कर ली जवाब कुछ न बन पड़ा तीसरे पेड़ की पारी आई सत्यका हाथ लगतेही उसकी भी वही हालत हुई राजा अत्यन्त लजित हुआ सत्य ने कहा कि मूर्ख यह तेरे तप के फल कदापि नहीं इनको तो इस पेड़ पर तेरे अहंकारने लगा रक्खाथा वह कौन सा ब्रत वा तीर्थयात्रा है जो तूने निरहंकार