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दरमियान किसी को कीड़े मालूम पड़ते हैं पर जब उस शीशे को लगाकर देखो जिससे छोटी चीज़ बड़ी नज़र आती है तो एक एक बूंद में हज़ारोही जीव सूझने लग जाते हैं पस जो तू उस बातके जानने से जिसे अवश्य जानना चाहिये डरतानहीं ती आ मेरे साथ आ मैं तेरी आंखें खोलूंगा निदान सत्य यह कह के राजा को मन्दिर के उस बड़े ऊँचे दरवाजे पर चढ़ा ले-गया कि जहाँ से सारा बाग दिखलाई देता था और फिर वह उससे यों कहने लगा कि भोज मैं अभी तेरे पाप कर्मों का कुछ भी जिकर नहीं करता क्योंकि तुने अपने को निरा निपाप समझ रक्खा है पर यह तो बतला कि तूने पुण्य स कौन कौन से किये हैं कि उनसे सर्वशक्तिमान जगदीश्वर संतुष्ट होगातो मैं भी सब लोगोंकी तरह निस्संदेह तेरी प्रशंसा करूं राजा यह सुनके अत्यन्त प्रसन्न हुआ यह तो मानों उसके मनकी बात थी पुण्य कर्मके नाम ने उसके चित्तको कमलसा खिला दिया उसे निश्चय था कि पापतो मैंने चाहे किया हो चाहे