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इस समय हम तेरेही मनको जांच रहेहैं राजा के जीपर एक अजब दहशत सी छागई नीची निगाहें करके गरदन खुजाने लगा सत्यबोला भोज तू डरताहै तुझे अपने मनका हाल जानने में भी भय लगताहै भोजने कहा कि नहीं इस बातसे तो नहीं डरता क्योंकि जिसने अपने को नहीं जाना उसने फिर क्या जाना सिवाय इस के मैं तो आप चाहता हूं कि कोई मेरे मनकी थाह लेवे और अच्छी तरह से जाँचे मारे व्रत, और उपवासों के मैंने अपना फूलसा शरीर कांटा बनादिया ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते २ सारा खजाना खाली करडाला कोई तीर्थ बाक़ी न रक्खा कोई नदी या तालाब नहाने से न छोड़ा ऐसा कोई आदमी नहीं है जिसकी निगाह में मैं पवित्र पुण्यात्मा न ठहरूं सत्य बोला ठीक पर भोज यह तो बतला कि तू ईश्वर की निगाह में क्या है क्या हवामें बिना धूप तसरेणु कभी दिखलाई देते हैं पर सूर्य्य को किरन पड़तेही कैसे अनगिनत चमकने लग जाते हैं क्या कपड़े में छाने हुए पानी के