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पड़ेगा इसी अर्सेमें वह राजा उस स्वप्नेके मन्दिरमें खड़ा २ क्या देखता है कि एक जोतसी उसके साम्हने आस्मान से उतरी चली आती, है उसका प्रकाश तो हज़ारों सूर्य से भी अधिक है परन्तु जैसे सूर्य्यको बादल घेर लेता है इस प्रकार उसने अपने मुहँपर एक नकाब डाल लिया है नहीं तो राजाकी आँखें कब उसपर ठहर सकती थीं बस्न इस नकाब पर भी मारे चकाचौंध के झपकी चली जाती थीं राजा उसे देखतेही काँप उठा और लड़खड़ाती सी जबान से बोला कि हे महाराज आप कौन हैं और मेरे पास किस प्रयोज़न से आये हैं उस देवी पुरुषने बादल की गरजके समान गंभीर उत्तर दिया कि मैं सत्य हूं मैं अंधों की आँखें खोलताहूं मैं उनके आगे से धोखेकी टही हटाता हूं मैं मृगतृष्णा के भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूं और स्वप्ने के भूले हुओंको नींदसे जगाता हूं हे भोज यदि कुछ हिम्मत रखता है तो आ हमारे साथ आ और हमारे तेजके प्रभाव से मनुष्यों के मन के मन्दिरों का भेद ले