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का मन्दिर बनकर बिलकुल तैयार होगया जहां कहीं उसपर नक्काशी का काम किया है तो बारीकी में हाथीदाँत को भी मात कर दिया है जहाँ कहीं पच्चीकारी का हुनर दिखलाया है तो जवाहिरों को पत्थरों में जड़कर तसवीर का नमूना बनादिया है कहीं लालों-के गुल्लालों पर नीलम की बुलबुलें बैठी हैं और ओसकी जगह हीरों के लोलक लटकाये हैं कहीं पुखराजों की डंडियों से पन्ने के पत्ते निकाल कर मोतियों के भुट्टे लगाए हैं सोने की चोवों पर कमखाब के शामियाने और उनके नीचे बिल्लौर के हौजों में गुलाब और केवड़े के फुहारे छूट रहे हैं मानों धूप जलरह। है सैकड़ों कपूरके दीपक बलरहे हैं राजा देखलेही मारे घमण्ड के फूल कर भशक बन गया कभी नीचे कभी ऊपर कभी दहने कभी बायें निगाह करता और मन में शोचता कि क्या अब इतने पर भी मुझे कोई स्वर्ग में घुसने से रोकेगा या पवित्र पुण्यात्मा न कहेगा मुझें अपने कर्मोंका भरोसा है दूसरे किसी से क्या काम