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और लोहेके बदल उसमें सब जगह सोना काम मैं आवे जिसमें भगवान् भी उसे देखकर प्रसन्न होजावे और मेरा नाम इस संसार में अतुल कीर्ति पाचे यह सुनकर सारा दरबार पुकार उठा कि धन्य महाराज धन्य क्यों न हो जब ऐसे हो तब तो ऐसे हो आपने इस कलिकाल को सत्ययुग बना दिया मानो धर्म का उद्धार करने को इस जगत् में अवतार लिया आज आपसे बढ़कर और दूसरा कौन ईश्वरका प्यारा है हमने तो पहलेही से आपको साक्षात् धर्मराज विचारा है व्यासजी ने कथा प्रारम्भ की कथा के पीछे देर तक भजन कीर्तन होता रहा इसमें चांद शिरपर चढ़आया घड़ियाली ने निवेदन किया कि महाराज रात आधी के निकट पहुँची राजाकी आँखों में नींद छारही थी व्यासजी कथा कहते थे पर राजाको ऊँघ आतीथी उठकर रनवास में गया जड़ाऊ पलंग और फूलों की सेज पर सोया रानियाँ पैर दाबने लगीं राजा जी की आँख झपक गई स्वप्न में क्या देखता है कि वह बड़ा संगमरमर,