पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/७७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
राजा और प्रजा।
६६


लतोंमें फरियाद करना आरम्भ किया है उससे हम लोगोंकी आत्म- मर्यादा बहुत ही घटती जा रही है।

उदाहरणके लिये हम उस घटनाका उल्लेख कर सकते हैं जिसमें खुलनाके मजिस्ट्रेटने अपने मुहर्रिरको मारा था। लेकिन यह बात पहले से ही बतला देना आवश्यक है कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट बेल साहब बहुत ही दयालु उन्नत विचारके और सहृदय मनुष्य हैं और उनमें भार- तवासियोंके प्रति उदासीनता या अवज्ञा नहीं है। हमारा विश्वास है कि उन्होंने जो मुहर्रिरको मारा था उससे केवल दुर्द्धर्ष अँगरेजोंके स्वभावकी हठकारिता ही प्रकट होती है बंगालियोंके प्रति घृणा नहीं। जिस समय जठरानल प्रज्वलित होता है उस समय बहुत ही साधा- रण कारणसे भी क्रोधानल भड़क उठता है। यह बात भारतवासि- योंमें भी होती है और अँगरेजोंमें भी, इस लिये इस घटनाके सम्ब- न्धमें विजातिद्वेषका प्रश्न उठाना उचित नहीं है ।

लेकिन बादीकी ओरके बंगाली बैरिस्टर महाशयने इस मुकदमेके समय कई बार कहा था कि मुहर्रिरोंको मारना अँगरेजोंके लिये उचित नहीं है। क्योंकि वेल साहब यह बात जानते थे अथवा उन्हें यह जानना चाहिए था कि मुहर्रिर उलटकर हमें मार नहीं सकता है

यदि यह बात सच हो तो यथार्थ लज्जा उसी मुहर्रिर और उस मुहर्रिरकी जातिके लोगोंको होनी चाहिए। क्योंकि अचानक क्रोधमें आकर किसीको मार बैठना मनुष्यकी दुर्बलता है । लेकिन मार खाकर बिना उसका बदला चुकाए रोने लगना कायरकी दुर्बलता है । हम यह बात कह सकते हैं कि मुहर्रिर यदि उलटकर बेल साहबको मार बैठता तो सच्चे अंगरेजकी तरह वे भी मन ही मन उसपर श्रद्धा करते। हमें सच्चाईसे और प्रसन्नतापूर्वक स्वीकृत करना चाहिए कि यह बात