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राजा और प्रजा।
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हम साधारण मनुष्योंकी मूढ़ताको क्यों दोष दें, स्वयं सरकार ही उपयुक्त और अनुरूप अवसर पाकर क्या करती है ? जब सरकार देखती है कि कोई डिपुटी मजिस्ट्रेट अधिकांश असामियोंको छोड़ देता है तब गवर्नमेण्ट यह नहीं सोचती कि संभवतः यह डिपुटी मजिस्ट्रेट दूसरे मजिस्ट्रेटोंकी अपेक्षा अधिकतर न्यायशील है, इसी लिये यह गवाहोंके सच और झूठका बिना सूक्ष्म रूपसे और किए असामीको दंड देनेमें संकोच करता है। अतः इसकी इस सचे- तन धर्मबुद्धि और सतर्क न्यायपरताके लिये जल्दी ही इसकी पदवृद्धि कर देना कर्तव्य है । अथवा यदि सरकार देखती है कि किसी पुलिस कर्मचारीके इलाकेमें जितने अपराध होते हैं उनकी अपेक्षा बहुत कम अपराधी पकड़े जाते हैं अथवा वह यह देखती है कि चलान किए हुए असामियों से बहुतसे असामी छूट जाते हैं, तब वह अपने मनमें यह नहीं सोचती कि संभवतः यह पुलिस कर्मचारी दूसरे पुलिस कर्म- चारियोंकी अपेक्षा अधिक सत्प्रकृतिका मनुष्य है । यह भले आदमि- योंका चोरीमें चलान नहीं करता अथवा स्वयं झूठी गवाहियाँ तैयार करके मुकदमेकी सब कमजोरियोंको दूर नहीं कर देता, अतः पुरस्कार स्वरूप जल्दी ही इसके ग्रेडकी वृद्धि कर देना उचित है। हमने जो इन दो आनुमानिक दृष्टान्तोंका उल्लेख किया है ये दोनों ही संभवत: न्याय और धर्मकी ओर ही अधिक हैं। लेकिन यह बात किसीसे छिपी नहीं है कि सरकारके हाथों इस प्रकारके अभागे भले आदमियोंका कभी सम्मान या तरक्की नहीं होती।

सर्वसाधारण भी सरकारकी अपेक्षा अधिक सूक्ष्मबुद्धिवाले नहीं हैं। वे भी खूब मोटे हिसाबसे हर एक बातका विचार करते हैं। वे कहते है कि हम इतने आईन कानून और गवाह-सबूत कुछ नहीं समझते ।