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राजा और प्रजा।
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यदि इस समय कोई व्यक्ति न्यायकी दोहाई देकर उठ खड़ा हो तो या तो स्वार्थपरता ही लजाके कारण कुछ संकुचित हो जायगी और नहीं तो न्याय ही छद्मवेश धारण करनेकी चेष्टा करेगा । जिन दिनों अन्याय और अनीति बलके साथ नि:संकोच भावसे अपना प्रकाश करती थी उन दिनों बलके अतिरिक्त उसका सामना करनेवाला और कोई न होता था, लेकिन आजकल जब कि वह स्वयं ही अपने आपको छिपानेकी चेष्टा करती है और बलके साथ अपना सम्बन्ध अस्वीकृत करके न्यायको अपनी ओर खींचती हुई बलवान् होना चाहती है तब वह आप ही अपने साथ शत्रुता करने लग जाती है । इसीलिये आज- कल विदेशमें अँगरेज लोग कुछ दुर्बल हो रहे हैं और इसके लिये वे सदा बेचैनी दिखलाते हैं।

इसी लिये हम लोग भी जब अँगरेजोंका कोई दोष देख पाते हैं तब उन्हें दोषी कहनेका साहस कर बैठते हैं। इसके लिये हमारे अँगरेज प्रभू कुछ नाराज होते हैं। वे कहते हैं कि नवाब जब स्वेच्छाचार करते थे, मराठे सैनिक जब लूट-पाट करते थे, ठग जब गला घोंट- कर लोगोंको मार डालते थे तब तुम्हारे कांग्रेसके सभापति और समाचारपत्रोंके सम्पादक कहाँ थे ! हम कहते हैं कि तब वे कहीं नहीं थे और यदि वे रहते भी तो उनके रहनेका कोई फल न होता । उस समय गुप्तरूपसे विद्रोह करनेवाले लोग थे, मराठे और राजपूत थे। उन दिनों बलके विरुद्ध बलके सिवा और कोई उपाय ही न था। उन दिनों चोरके सामने धर्मको कथा उठानेका विचार किसीके मनमें आता ही न था।

आज कांग्रेस और समाचारपत्रोंका जो यह अभ्युदय हुआ है उसका कारण यही है कि अँगरेजोंमें अखंड बलका प्रादुर्भाव नहीं है।