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इम्पीरियलिज्म।
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भारतवर्षके किसी स्थानमें उसकी स्वाधीन शक्तिको संचित न होने देना अँगरेजोंकी सभ्य नीतिके अनुसार अवश्य ही लज्जास्पद है। लेकिन यदि इम्पीरियलिज्मका मंत्र पढ़ दिया जाय तो जो बात मनुप्यत्वके लिये परम लज्जाकी है वही राजनीतिकताके लिये परम गौरबकी हो जाती है।

अपने निश्चित एकाधिपत्य के लिये एक बड़े देशके असंख्य लोगोंको निरस्त्र करके उन्हें सदाके लिये पृथ्वीके जनसमाजमें पूर्णरूपसे निःस्वत्व और निरुपाय कर देना कितना बड़ा अधर्म-कितनी अधिक निष्ठुरता है। इसकी व्याख्या करनेकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस अधर्मकी ग्लानिसे अपने मनको बचानेके लिये किसी बड़े सिद्धान्तकी आड़ लेनी पड़ती है।

सेसिल रोड्स नामक एक साहब इम्पीरियल-वायुसे ग्रस्त थे। यह बात सभी लोग जानते हैं कि इसीलिये दक्षिण आफ्रिकाके बोअरोंकी स्वतंत्रता लुप्त करनेके वास्ते उनके दलके लोगोंने किस प्रकारका आग्रह किया था।

व्यक्तिगत व्यवहारमें जिन कामोंको लोग चोरी और मिध्या आचार कहते हैं, जो बातें जाल, खून और डकैती कहलाती हैं, यदि उन कार्यों और बातोंका किसी 'इज्म'-प्रत्यययुक्त शब्दसे संशोधन कर दिया जाय तो वे कहाँतक गौरवका विषय हो जाती हैं, इसके सैकड़ों प्रमाण विलायती इतिहासके मान्य व्यक्तियोंके चरित्रोंमें मिलते हैं।

इसीलिये जब हम अपने शासकोंके मुँहसे इम्पीरियलिज्मका आभास पाते हैं तब स्थिर नहीं रह सकते। यदि इतने बड़े रथके पहिएके नीचे हम लोगोंका मर्मस्थान पिस जाय और इसपर हम धर्मकी मी दुहाई देने लगे तो उसे कोई न सुनेगा। क्योंकि मनुष्य केवल