पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१११

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
राजा और प्रजा।
१००


करनेके योग्य नहीं है तो भी उसका स्वामी यही बात सुनना चाहता है। आजकल अँगरेजलोग साम्राज्यके मदसे मत्त हैं, इसलिये वे तरह तरहसे यही सुनना चाहते हैं कि हम लोग राजभक्त हैं—हम लोग अपनी इच्छासे ही उनके चरणोंमे बिके हुए हैं। और फिर इस बातको वे सारे संसारमें ध्वनित और प्रतिध्वनित करना चाहते हैं।

और इधर हम लोगोंका किसी प्रकारका कुछ विश्वास भी नहीं किया जाता। इतना बड़ा देश एक दमसे निरस्त्र है। यदि दरवाजे पर कोई हिंसक पशु आजाय तो हम लोगोंके हाथमें दरवाजा बन्द कर लेनेके सिवा और कोई उपाय नहीं है। पर जब सारे संसारको साम्राज्यका बल दिखलाना होता है तब अटल भक्तिकी रट लगानेके समय हमारी आवश्यकता होती है। मुसलमान शासकोंके समय हम लोगोंका देशनायकता और सेना नायकता का अधिकार छीना नहीं गया था। मुसलमान सम्राट् जब अपने दरबारमें अपने सरदारोंको साथ लेकर बैठा करते थे तब वह कोरा प्रहसन ही नहीं होता था। वे सरदार या राजेलोग सचमुच सम्राट्के सहायक थे, रक्षक थे, सम्मानभाजन थे। लेकिन आजकल राजाओंका सम्मान केवल मौखिक है। और उन्हें अपने पीछे पीछे घसीटकर देस परदेसमें राजभक्तिका अभिनय और आडम्बर कराना उन दिनोंकी अपेक्षा चौगुना बढ़ गया है। जिस समय इंग्लैण्डकी साम्राज्य-लक्ष्मी अपनी सजावट करने बैठती है उस समय उपनिवेशोंके सामान्य शासक लोग तो उसके माथेके मुकुटमें झिलमिलाने लगते हैं और भारतवर्षके प्राचीन वंशीय राजामहाराजा उस राजलक्ष्मीके पैरोंके नूपुरोंमें घुँघरुओंकी तरह बँध कर केवल झनकार देनेका काम करते हैं। यह बात इस बारके विलायती दरबारमें सारे संसारने अच्छी तरह देखी है। अँगरेजी साम्राज्यके जगन्नाथजीके मन्दिरमें जहाँ कनाडा,