इस देश में राजपूतों का जो शासन चल रहा था, वह. आपसी प्रतिद्वन्दिता के कारण यदि निर्बल न पड़ गया होता और बाहर से आयी हुई लुटेरी जातियों के आक्रमण का उनं लोगों ने यदि मुँह तोड़ जवाब दिया होता, यदि यहाँ के राज्यों ने सामन्त शासन-प्रणाली की श्रेष्ठता को कायम रखा होता और यदि यहाँ के राज्यों के सामन्तों ने शासन-प्रणाली के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन किया होता तो यहाँ के राज्यों में प्रचलित सामन्त शासन-प्रणाली का पतन न हुआ होता । यूरोप में जिस समय फ्रांस के राजा सप्तम चार्ल्स ने अपनी स्थायी सेना रखकर टेल नामक कर लगाया, उस समय उसके सामन्त विद्रोही हो उठे। इसके पहले यूरोप के किसी राज्य में राजा की अलग से कोई स्थायी सेना न थी। सामन्तों की सेनाओं के द्वारा राज्य के सभी काम होते थे। इसी प्रकार की परिस्थितियाँ राजस्थान के राज्यों में समय-समय पर पैदा हुई। कोटा के राजा के द्वारा शासन की पुरानी प्रथा में परिवर्तन करने पर भयानक कांड हुआ था। साठ वर्ष पहले मेवाड़ के कुछ सामन्तों के विद्रोही हो जाने पर अवसरवादी जातियों ने मेवाड़ पर आक्रमण किये। उस समय मेवाड़ के राणा को अर्थ लोभी सिंधी सेना की सहायता लेनी पड़ी। उसका परिणाम राज्य के लिये और भयानक साबित हुआ। राज्य के सामन्त आपस में लड़ रहे थे। उन लोगों का विश्वास अब राणा पर न रहा गया था। राज्य में कोई ऐसी शक्ति न थी जो सब को एक कर सकती। इसलिए मेवाड़ राज्य का पतन भयानक रूप से आरंभ हुआ। उन दिनों में मारवाड़ राज्य की दशा अच्छी चल रही थी। वहाँ के सामन्तों में ईर्ष्या का कोई भाव न था इसलिये वहाँ के राजा को आक्रमणकारी जातियों की सहायता लेने की आवश्यकता न पड़ी ।उन्हीं दिनों में पठानों की सेना ने मारवाड़ में प्रवेश करके बुरे तरीके से राज्य का विध्वंस किया। इस प्रकार की परिस्थितियाँ समय-समय पर यहाँ के राज्यों के सामने आयी और उनके परिणाम स्वरूप न केवल राजस्थान के राज्य निर्बल और असमर्थ हो गये, बल्कि उनमें प्रचलित शासन-प्रणाली क्षत-विक्षत होकर मृतप्राय हो गयी। राजा स्वेछाचार से काम न ले और राज्य के सामन्त राजभक्त बने रहने के साथ-साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें तो इतिहासकार हालम अनुसार सामन्त शासन-प्रणाली शासन की एक अच्छी प्रणाली साबित हो सकती है। इस प्रणाली का मूल उद्देश्य देशभक्ति अथवा राजभक्ति होना चाहिये। अधिकार पाने के बाद स्वेच्छाचार से मनुष्य का पतन होता है। यदि राजा और सामन्तों में देशभक्ति अथवा राजभक्ति की अटूट भावना न हो तो सामन्त प्रणाली कभी अच्छी साबित न होगी। जागीरदारी प्रथा के अनुसार राजा और सामन्तों के कर्तव्यों का निश्चय होता है और वे लिखित रुप में राजाओं और सामन्तों के पास रहा करते हैं। राजस्थान के राज्यों में ऐसा ही रहा है। मारवाड़ के राजा और सामन्तों के कर्तव्यों के निर्णय करने में दोनों को महत्त्व दिया गया है। उसके अनुसार यदि वहाँ का राजा स्वेच्छाचार से काम लेता है अथवा सामन्तों के परामर्श की उपेक्षा करता है तो वहाँ के सामन्तों को अधिकार होता है कि वे मिलकर अपने स्वेच्छाचारी राजा के विरुद्ध विद्रोह करें और उसको सिंहासन से उतारकर किसी दूसरे को सिंहासन पर बैठावें । राजा और सामन्तों का सबसे बड़ा कर्तव्य यह है कि वे एक दूसरे का सम्मान करें। राजा का कर्तव्य है कि वह सामन्तों को सम्मान दे और सामन्तों का कर्तव्य है कि वे अपने राजा के प्रति सदा राज-भक्त बने रहें। इस प्रकार राजा और सामन्त मिलकर अपने राज्य के कल्याण की बात सदा सोचें । सामन्त शासन-प्रणाली का सबसे श्रेष्ठ उद्देश्य यही है। 81
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