- । बादशाह अकबर के समय मुगल साम्राज्य में अवुल-फजल के अनुसार, चार सौ सोलह सेनापति थे, जो दो सौ से दस हजार तक अश्वारोही सैनिकों पर अधिकार रखते थे और सेनापतियों में सैंतालीस राजपूत सेनापति थे, जिनके अधिकार में तिरेपन हजार अश्वारोही सेना थी। मुगल साम्राज्य के समस्त सेनापतियों के अधिकार में पाँच लाख तीस हजार अश्वारोही सैनिक थे । सम्राट के अधिकार में चालीस लाख पैदल सेना थी। सैंतालीस राजपूत सेनापतियों में सत्रुह के अधिकार में एक हजार से पाँच हजार तक अश्वारोही और शेष तीस के अधिकार में पाँच सौ से एक हजार तक अश्वारोही सैनिक थे। आमेर, मारवाड़, बीकानेर, बूंदी, जैसलमेर, बुन्देलखंड और सिखावत के राजा एक हजार से अधिक अश्वारोही सैनिकों के सेनापति थे। मुगलों के साथ वैवाहिक सम्बंध होने के कारण आमेर के राजा को पाँच हजार अश्वारोही सैनिकों के सेनापति होने का अधिकार मिला था। मारवाड़ का राठौड़ राजा उदयसिंह एक हजार अश्वारोहियों का सेनापति था। परन्तु मारवाड़ के राजवंश की शाखा में उत्पन्न होने वाले बीकानेर के रायसिंह को केवल चार हजार अश्वारोहियों का सेनापतित्व मिला था। चन्देरी, करौली, दतिया के स्वतंत्र राजा और कुछ दूसरे राजा लोग तथा सिखावत के राजा नीची श्रेणी के सेनापति थे और वे चार सौ से सात सौ तक अश्वारोहियों के सेनापति थे। इन्हीं लोगों में शक्तावत वंश के लोग भी थे जिनका अपने भाई राणा प्रताप के साथ झगड़ा होने के बाद सम्राट अकवर ने लगभग सभी राजपूत राजाओं को अपनी अधीनता में ला कर उन्हें अपने यहाँ सेनापति बना लिया था। वादशाह अकबर ने अपनी दूरदर्शिता और राजनीति से दो लाभ उठाये । राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बंध कायम करके उसने उनको अपनी तरफ आकर्षित किया। उसके परिणामस्वरूप राजपूतों के मनोभावों से उसके विदेशी होने का भाव दूर हो गया। दूसरा लाभ उसने यह उठाया कि जिन राजाओं की स्वाधीनता का उसने अपहरण किया, वे उसके विद्रोही होने के बजाय साम्राज्य के सेनापति बनकर सदा उसके शासन को सुदृढ़ बनाते रहे । अकवर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने मुगल सिंहासन पर बैठकर जिस उदार नीति का आश्रय लिया था, औरंगजेब उस नीति का अनुयायी न बन सका। बादशाह शाहजहाँ के समय तक मुगलों की जो नीति रही थी, औरंगजेब ने अपने शासन काल में उसे बिल्कुल मिटा दिया और खुलकर उसने पक्षपातपूर्ण शासन आरंभ किया, इसके फलस्वरूप हिन्दू लोग उसके विरोधी होने लगे। राजपूत राजाओं के साथ शत्रुता का भाव पैदा हुआ। इसके पहले तक देशी राजाओं की नो भावना मुगल साम्राज्य के प्रति थी, वह एक साथ तिरोहित हो गयी। समय-समय पर राजपूतों ने औरंगजेब का विरोध किया और उसके लड़के अकवर का समर्थन करके औरंगजेब को सिंहासन से उतारने की चेष्टा की। औरंगजेब की मृत्यु हो जाने के वाद फर्रुखसियर सिंहासन पर बैठा। वह अयोग्य और निर्वल था। उसके शासन काल में तैमूर के वंशजों का सुदृढ़ और अचल साम्राज्य क्षत विक्षत हो गया। इस समय किस प्रकार की शासन-प्रणाली राजस्थान में श्रेष्ठ मानी जा सकती है. इसकी सही कल्पना करना इस समय संभव नहीं है। बहुत समय से इन राज्यों में सामन्त शासन प्रणाली रही है, उसने न जाने कितनी शताब्दियों तक सफलतापूर्वक शासन किया है। इस दशा में आसानी के साथ इस बात का निर्णय नहीं किया जा सकता कि इन राज्यों के लिए शासन की कौन-सी प्रणाली सर्वोत्तम हो सकती है। लगभग आठ सौ वर्षों तक इस देश में मुगलों, पठानों और बीच-बीच में थोड़ा-बहुत अन्य लोगों का शासन चला है। उसके समय में जो भी प्रणाली काम करती रही, उसमें भी बहुत कुछ आधार सामन्त शासन-प्रणाली (जागीरदारी प्रथा) का था। 80
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