दुर्ग में पहुँचने के लिए यद्यपि चूण्डावत सरदारों ने कम सावधानी से काम नहीं लिया था परन्तु वे एक दूसरे रास्ते से रवाना हुए थे। उस रास्ते का बहुत बड़ा भाग पानी से भरा हुआ था। इसलिए वे लोग रास्ते से लौटने लगे। संयोग से उसी समय अन्तला का रहने वाला एक गड़रिया उनको मिला। उससे उनको अन्तला पहुँचने का सही रास्ता मालूम हुआ। उसी समय चूण्डावत लोग बड़ी तेजी के साथ अन्तला दुर्ग की तरफ बढ़े। शक्तावतों की अपेक्षा चूण्डावत लोग युद्ध में अधिक कुशल थे। दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए उनके पास अच्छे साधन थे। वे अपने साथ ऊँची और मजबूत सीढ़ियाँ भी ले गये थे। जिस समय शक्तावत लोग दुर्ग में प्रवेश करने की चेष्टा कर रहे थे, चूण्डावत लोग वहाँ पहुँच गये और उन लोगों ने दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए अपने साथ के लोगों को ललकारा । चूण्डावत लोगों के अधिकारी ने सीढ़ी लगाकर उस पर चढ़ना आरंभ किया और अपने साथ के आदमियों को उसने सीढ़ी पर आने के लिए आदेश दिया। उसी समय शत्रु का एक. गोला आकर उस पर गिरा। उसके लगते ही चूण्डावतों का अधिकारी सीढ़ी से गिरते ही मर गया। दुर्ग के नीचे चूण्डावत और शक्तावत उसमें प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे और दुर्ग के ऊपर जो मुस्लिम सेना मौजूद थी वह उन दोनों को असफल करने की चेष्टा कर रही थी। जिस समय चूण्डावत का नेता शत्रु के गोले से नीचे गिरा, उस समय शक्तावत अपनी पूरी शक्ति लगाकर दुर्ग के ऊपर पहुँचने के लिये प्रयास कर रहे थे, शक्तावतों का नेता अपने ऊँचे हाथी के ऊपर चढ़ गया और उसने दुर्ग के मजबूत फाटक को तोड़ने की कोशिश की। उसने अपने हाथी को आगे बढ़ाया। फाटक के मजबूत किवाड़ों में लोहे की मोटी-मोटी कीलें लगी हुई थीं। इसलिये हाथी उसके किवाड़ों को तोड़ने में सफल न हो सका। इस समय मुस्लिम सैनिकों की गोलियों से शक्तावत सैनिक बड़ी तेजी के साथ घायल हो रहे थे। इसी समय चूण्डावत सैनिक भीषण रूप से गरजते हुए आगे बढ़े। उस गर्जना को सुनकर शक्तावत नेता को अपनी जीत में संदेह मालूम होने लगा। वह किसी प्रकार हरावल प्राप्त करना चाहता था। उसने अपने प्राणों का भय छोड़कर फाटक की कीलों पर अपना शरीर लगा दिया और महावत को ललकार कर हाथी को उसके शरीर पर जोर से टक्कर मारने का आदेश दिया। महावत ने यही किया। हाथी की जोरदार टक्कर से दुर्ग का फाटक टूट गया। शक्तावत नेता हाथी की ठोकर से और लोहे की मजबूत नुकीली कीलों के लगने क्षतः विक्षत हो कर मर गया। उसके मृत शरीर पर पैर रखते हुये शक्तावत सैनिकों ने दुर्ग में प्रवेश करके मुस्लिम सैनिकों का संहार करना आरंभ किया। इस अपूर्व वलिदान के बाद भी शक्तावतों को हिरोल प्राप्त नहीं हुआ। इसलिये कि इसके पहले जिस समय चूण्डावत सैनिकों की भीषण गर्जना सुनायी पड़ी थी, उसी समय चूण्डावत सैनिकों ने अपने नेता का मृत शरीर दुर्ग के ऊपर फेंक दिया था और उसके बाद वचे हुये सभी चूण्डावत सैनिक दुर्ग के ऊपर पहुँच गये थे। जिस समय गोला लगने से चूण्डावतों का नेता सीढ़ी से गिर कर मर गया था, उसी समय उस वंश के एक दूसरे शूरवीर सैनिक ने जो मरे हुये नेता का निकटवर्ती आत्मीय था, उसका स्थान ग्रहण किया। चूण्डावतों का यह नया नेता देवगढ़ का सामन्त था। वह जितना साहसी था, भीषण अवसरों पर वह उतना ही निर्भीक भी था। चूण्डावत नेता के सीढ़ी से गिरते ही देवगढ़ के सामन्त ने उसके मृत शरीर को चादर में वाँधकर अपनी पीठ पर रखा और हाथ में भाला लेकर वह सीढ़ी पर चढ़ गया। दुर्ग के ऊपर जाकर उसने बड़े पराक्रम 77
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