। । - तीन पैदल सैनिक रख सकने का अधिकार दे दिया जाता था। इंगलैंड के राजा विलियम ने जिस समय अपना राज्य साठ हजार भागों में विभजित किया था, उस समय उसके प्रत्येक भाग को दो सौ रूपये सेना के लिए देने पड़ते थे। जो भाग सेना नहीं दे सकता था, वह रुपये देता था। इधर बहुत दिनों से इंगलैंड में जागीरदारी प्रथा का अंत हो गया है। इसके पहले जब यह प्रथा वहाँ पर जारी थी, उस समय सामन्तों की सेना पर राजा के अधिकार निर्धारित थे। प्रत्येक सैनिक वर्ष में केवल चालीस दिन राज्य का काम करता था। इन दिनों में राजा सैनिकों से कोई भी कार्य ले सकता था। इन सैनिकों को राज्य के भीतर अथवा बाहर राजा के आदेश पर युद्ध करना पड़ता था। राजा के प्रति राजस्थान में सामन्तों को कुछ नियम पालन करने पड़ते हैं। मेवाड़ के सामन्तों को वर्ष में कुछ दिन राणा की राजधानी उदयपुर में रहना पड़ता है। सभी सामन्तों को एक साथ ऐसा नहीं करना पड़ता। सामन्तों का विभाजन हो जाता है। एक वार आये हुये सामन्तों का जव समय समाप्त हो जाता है तो वे चले जाते हैं और उनके स्थान पर दूसरे सामन्त आ जाते हैं। कुछ युद्ध सम्बंधी उत्सव हुआ करते हैं। ऐसे अवसरों पर सभी सामन्तों को सेना और रसद के साथ राजधानी में आकर उपस्थित होना पड़ता है। लेकिन राज्य से बाहर जब कभी सैनिक युद्ध के लिये जाते हैं तो सामन्तों की सेनाओं के लिये कुछ रसद राणा की तरफ से भी दी जाती है। सामन्तों को दंड - जिन दिनों यूरोप में जागीरदारी प्रथा के अनुसार राज्य का शासन होता था, उन दिनों में राजा की आज्ञा का पालम न करने पर सामन्तों को दंड दिया जाता था। इसी प्रकार की प्रणाली मेवाड़ में भी चलती है। यहाँ पर सामन्तों को भूमि देकर जो इकरारनामा लिखा जाता है, उसमें साफ-साफ इस बात का उल्लेख कर दिया जाता है। उसके अनुसार किसी सामन्त के द्वारा अनुशासन भंग करने पर अथवा अशिष्ट व्यवहार करने पर सामन्त को राजा के दंड देने पर रुपये देने पड़ते हैं। राजा को यह भी अधिकार होता है कि सामन्त के कर्त्तव्य पालन न करने पर वह उसके अधिकार की भूमि को जब्त कर ले। राजस्थान के राजा ऐसे अवसरों पर सामन्तों के अधिकार की भूमि को वापस ले लेने की अधिक चेष्टा करते हैं और उनको पदच्युत कर देते हैं। सामन्त लोग इस प्रकार का दंड पाने, पर भूमि छोड़ने की अपेक्षा रुपये देना अधिक पसंद करते हैं। जब कोई सामन्त पैतृक अधिकारों पर अपनी नियुक्ति पाता है और उस दशा में जव उसकी भूमि उससे वापस ली जाती है तो वह उसे किसी प्रकार छोड़ने के लिये तैयार नहीं होता और कभी-कभी राणा के साथ विद्रोह करके वह लड़ने के लिये तैयार हो जाता है। जागीरदारी प्रथा की अयोग्यता - सम्पूर्ण राजस्थान में राज्य का भाग्य और दुर्भाग्य .एक राजा के ऊपर निर्भर है। यदि वह अच्छा है तो राज्य की उन्नति हो सकती है और यदि वह अच्छा नहीं है तो राज्य के लाखों मनुष्यों का भाग्य पतित हो जाता है। इस प्रथा के अनुसार केवल एक ही मनुष्य लाखों मनुष्यों के भाग्य का संचालन करता है। यदि वह अपने कर्तव्य का पालन न कर सके अथवा उसके चरित्र में निर्वलता हो तो उसके राज्य का पतन निश्चित हो जाता है। फलस्वरूप अशांति, उपद्रव और अत्याचार पैदा होते हैं। इस प्रथा की यह सबसे बड़ी निर्बलता है । इस प्रथा में इस प्रकार की अनेक त्रुटियाँ हैं। इसके द्वारा कभी कोई राज्य अपनी उन्नति नहीं कर सका । जो कमजोरियाँ राजस्थान के राज्यों में इन प्रथाओं के सम्बंध में पायी जाती हैं, वही यूरोप के राज्यों में भी रही है। - 75
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