उसका राज्य का कर, इस प्रकार के कई कर इस राज्य में लगाये जाते हैं। इन दिनों में युद्ध का कर प्रजा से वसूल नहीं किया जाता। इसके पहले इस राज्य में एक न एक युद्ध का कर चलता ही रहता था। इसका कारण यह था कि उन दिनों में इस राज्य को लगातार बहुत समय तक युद्ध करने पड़े थे। क्षकों पर जो खेती का कर लगता था, उसका निश्चय खेती में पैदा होने वाले अनाजों के आधार पर होता था। खेती में जिसकी जैसी पैदावार होती थी, उसको उसी हिसाव से कर देना पड़ता था। पिछले दिनों में युद्ध कर की भी यही हालत हो गयी थी। खेतों की पैदावार के हिसाव से ही युद्ध कर भी लिया जाता था। राज्य के पहाड़ी स्थानों पर कर वसूल करने की दूसरी व्यवस्था है। क्योंकि यहाँ की भूमि में जो खेती होती है, कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसीलिए भूमि के हिसाव से पहाड़ी कृषकों पर कर लगा दिया जाता है। में कुछ और भी ऐसे अवसर आते हैं, जिससे राणा को आर्थिक लाभ होता है। ऐसे अवसरों में, किसी सामन्त अथवा सरदार का अभिषेक अथवा इस तरह के कोई भी दूसरे कार्य जब कभी राज्य में होते हैं तो उन अवसरों पर राणा को नजर दी जाती है। इस भेंट में मिलने वाली सम्पत्ति का कोई मूल्यांकन नहीं हो सकता । समय और परिस्थितियों के अनुसार मिलने वाली सम्पत्ति कम और अधिक हो सकती है। भूमिया सरदारों से वार्षिक अथवा त्रैवार्षिक राणा को एक निश्चित आय होती है। नियमों को भंग करने वालों और दूसरे अपराधियों को जो दंड दिया जाता है, उससे भी आर्थिक आय होती है। मेवाड़ राज्य में अपराधियों को अधिक कठोर दंड नहीं दिया जाता। प्राण दंड के स्थान पर उनको आर्थिक दंड देकर छोड़ दिया जाता है। इसका कारण यह भी है कि पहाड़ों पर रहने वाले जंगली लोग प्राय: अधिक अपराधी होते हैं और वे शारीरिक दंड की अपेक्षा आर्थिक दंड से अधिक घवराते हैं। खड लकड यह भी एक प्रकार का कर है। इसके द्वारा राज्य को अच्छी आय होती है। यह कर बहुत पहले से चला आ रहा है। जिस समय राणा अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए रवाना होता है, उस समय राज्य का प्रत्येक मनुष्य अथवा उसका परिवार राज्य की सेना के लिए काष्ठ और खड दिया करता था। कुछ दिनों के बाद यह कर विना किसी । युद्ध के ही लिया जाने लगा। खंड लकड का अभिप्राय रसद से है। युद्ध के दिनों में सेनाओं के लिये रसद राज्य के प्रत्येक ग्राम और नगर में वसूल किया जाता था। इस रसद में खाने के पदार्थों के सिवा और भी वहुत-सी चीजें वसूल की जाती थीं। यह प्रथा अव भी प्रचलित है । फ्रांस में जब सामन्त शासन-प्रणाली (जागीरदारी प्रथा) चल रही थी तो प्रजा से इसी प्रकार रसद ली जाती थी। वह प्रणाली विगड़ कर कुछ और हो गयी और रसद के नाम पर खाने-पीने के पदार्थों के अतिरिक्त राज्य के अधिकारी धन वसूल करने लगे थे। फ्रांस की इन वातों का उल्लेख इतिहासकार हालम ने अपने ग्रंथ में किया है । उसने लिखा है कि फ्रांस का राजा जव राज्य में घूमने के लिए निकलता था तो उसके सामन्त उसके पास जाकर भेंट करते थे और सम्मानपूर्वक वे लोग सम्पत्ति के साथ घोड़ा और वहुमूल्य पदार्थ राजा को उपहार में देते थे। इस सम्मान में सामन्त जो कुछ खर्च करता था, उसे वह अपने कृषकों और व्यवसायियों से वसूल कर लेता था। मेवाड़ में मदिरा, अफीम और दूसरे मादक पदार्थों पर कर लिया जाता है, इन करों के द्वारा राज्य को आर्थिक लाभ होता है। 72
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