पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/६६

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सजीव और शक्तिशाली होकर रही। जिन दिनों में मुग़ल-सम्राट का शासन शिथिल और निर्बल पड़ गया था, मेवाड़ राज्य की सामन्त शासन-प्रणाली उस समय भी दृढ़ता के साथ चल रही थी। यूरोप के राज्यों में जिस प्रकार भूमि के अधिकार का निर्णय होता था, उसी प्रकार का निर्णय राजस्थान के राज्यों में मिलता है। उसके आधार पर यह मान लेना पड़ता है कि उन दिनों में भूमि का विधान पूर्व से लेकर पश्चिम तक-संसार के सभी राज्यों में एक ही था। शासन-प्रणाली का आधार यही भूमि थी। प्राचीन प्रथाओं में समय के अनुसार बहुत परिवर्तन हो जाना अत्यंत स्वाभाविक होता है। मेवाड़ राज्य में राणा लोगों के द्वारा जागीरदारी प्रथा के पुरानी प्रथा में कुछ परिवर्तन किये गये थे। परिवर्तन यहाँ के बहुत से शिलालेखों के द्वारा मालूम होते हैं। दीवारों में लगे हुए बहुत से पाषाणों में राणा की खुदी हुई आज्ञायें पढ़ने को मिलती हैं। राजपूतों ने अनेक शताब्दियाँ आक्रमणकारियों के अत्याचारों में व्यतीत की थी। इन दिनों में भयानक रूप से उनका विनाश हुआ था। विनाश और संहार के दिनों में किसी भी राज्य का विकास नहीं हो सकता । फिर भी राजपूतों ने अपने प्राचीन गौरव की रक्षा की थी। मुग़लो में जब बादशाह अकबर का व्यापक साम्राज्य चल रहा था, उन दिनों में भी मेवाड़ राज्य में राणा प्रताप के गौरव की पताका फहरा रही थी। शासन व्यवस्था में राजपूतों को मैंने बहुत योग्य पाया है। अपने जीवन में वे जिस प्रकार शूरवीर होते थे, उसी प्रकार नीति कुशल भी होते थे। समाज की जो मर्यादा उनके द्वारा कायम हुई थी, निश्चित रूप से वह प्रशंसनीय थी। व्यवसायियों और कृषकों को राज्य में सम्मानपूर्ण स्थान मिला था और उनको ऐसी सुविधाएँ प्राप्त थीं, जिनसे वे अपनी उन्नति कर सके। प्राचीन शिलालेखों के पढ़ने से पता चलता है कि जागीरदारी प्रथा में यहाँ पर शासन की एक अच्छी प्रणाली काम करती थी। राजस्थान के राज्यों में जिन राजाओं ने राज्य किया है और जो अब तक कर रहे हैं, यदि उनकी तुलना हम यूरोप के राजवंश के लोगों के साथ करें तो राजपूतों की श्रेष्ठता हमें स्वीकार करनी पड़ेगी। राजपूतों का प्राचीन इतिहास पढ़ने के बाद यह स्वीकार करना पड़ता है कि इनकी उत्पत्ति साधारण वंशों में नहीं हुई है। यह बात सही है कि उनका प्राचीन काल का गौरव आज मिट चुका है। उनके राज्य इन दिनों में बहुत गिरी हुई अवस्था में हैं और उनके स्वाभिमान व मर्यादा का पतन हो चुका है। परन्तु उनके जीवन की वर्तमान परिस्थितियाँ आज भी उनके प्राचीन गौरव का परिचय दे रही हैं। लगातार अनेक शताब्दियों तक अत्याचारों से पीड़ित रहकर भी राजपूतों ने अपने स्वाभिमान को बहुत अंशों में अब तक सुरक्षित रखा है। मेरी आँखों के सामने राणा का वंश है। इस वंश ने अपनी स्वाधीनता और मर्यादा की रक्षा के लिए कितने भीषण अत्याचारों को लगातार सैकड़ों वर्षों तक सहन किया है, इसको सोचकर शरीर रोमांचित हो उठता है । मुग़ल सम्राट जहाँगीर ने सीसोदिया वंश का इतिहास लिखा है।1 मेवाड़ के राणा को राजनीतिक परिस्थितियों के अधीन में होकर मुगलों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। मुग़ल सम्राट बाबर राजपूतों के विरुद्ध जो न कर सका था, हुमायूँ और अकबर को जिसमें सफलता न मिली थी, सम्राट जहाँगीर ने उसमें सफलता प्राप्त की थी। जहाँगीर ने मेवाड़ के मेवाड़ की राजपूत जाति में सीसोदिया वंश का बहुत ऊँचा स्थान है। इस वंश ने घटनाओं और परिस्थितियों के अनुसार अपने नामों में परिवर्तन किया है। पहले ये लोग सूर्यवंशी नाम से विख्यात थे। उसके बाद इस वंश के लोग गहिलोत कहलाये। बाद में आटेरिया और उसके उपरांत सीसोदिया के नाम 1. से प्रसिद्ध हुए। 66