। एशिया की जातियों से यह प्रथा अन्य देशों की जातियों में फैली और कुछ जातियों ने तातारी लोगों से इसको प्राप्त किया। यह तो निश्चित है कि प्राचीनकाल में इस प्रकार की शासन प्रणाली संसार के अनेक देशों में फैली हुई थी। प्रत्येक अवस्था में यह स्वीकार करना पड़ता है कि संसार के पूर्वी देशों में इस प्रथा की उत्पत्ति हुई और एशिया से असी, कैटी, किम्बिक और लोम्बर्ड से स्कैंडीनेविया, फ्रीजलैंड और इटली में यह प्रथा फैली। 'मध्यकालीन युग में जागीरदारी प्रथा' के प्रसिद्ध लेखक हालम के शब्दों में, सामन्तों की उत्पत्ति का अनुसंधान करना अथवा संसार के विभिन्न देशों में प्रचलित जागीरदारी प्रथा की तुलनात्मक आलोचना करना बहुत कठिन नहीं है। मौलिक बातों में वे एक दूसरे की छाया हैं। उनकी शासन-व्यवस्था एक ही प्रणाली का अनुकरण करती है। इस प्रथा को एक देश ने दूसरे देश से और एक जाति ने दूसरी जाति से पाया है। समय और परिस्थितियों ने उनके व्यावहारिक रूप में अंतर पैदा कर दिया है। फिर भी उनमें बहुत सी बातों की समानता मिलती है और उनसे जागीरदारी प्रथा के मौलिक सिद्धांतों का समर्थन होता है। रोम की रिपब्लिक गवर्नमेंट की शासन प्रणाली और जागीरदारी प्रथा में कोई अंतर नहीं है। उन दिनों में जंगली जातियों और सभ्य जातियों के संगठन अलग-अलग चलते थे। दोनों ही जातियाँ अपने-अपने क्षेत्रों में जिस प्रकार की शासन-प्रणाली की व्यवस्था रखती थीं, उनका रूप जागीरदारी प्रथा से भिन्न न था। उनकी प्रणाली एक थी और उन जातियों के लोग संगठित होकर अपने राज्यों के प्रति राजभक्त होकर रहते थे। यही अवस्था हिन्दुस्तान के जमींदारों और टर्की के तीमारिया लोगों की थी। संक्षेप में इन आलोचनाओं के आधार पर यह कहना आवश्यक नहीं मालूम होता है कि प्राचीन काल में जो शासन प्रणाली चलती थी, वह जागीरदारी प्रथा से ही अनुप्रेरित होती थी। यहाँ पर राजस्थान के राज्यों में प्रचलित जागीरदारी प्रथा को आवश्यकतानुसार विस्तार से लिखना मेरा उद्देश्य है। परन्तु इसके लिखने के समय उस समय की शासन-प्रणालियाँ जो दूसरे देशों में चल रही थीं, मेरे सामने आ जाती हैं। मुझे यहाँ की जागीरदारी प्रथा में और वहाँ की शासन प्रथाओं में कोई मौलिक अंतर दिखाई नहीं देता। यहाँ के राज्यों के सम्बंध में जो कुछ मैंने लिखा है, उसका समर्थन यहाँ की बहुत-सी बातों के द्वारा होता है। ग्रंथों में वही व्यवस्था मिलती है जो जनश्रुति द्वारा मालूम होता है। जो सनदें मुझे मिली हैं, अथवा उनकी जो नकलें प्राप्त हुई हैं, उनके द्वारा भी वही सामग्री मुझे प्राप्त होती है। उत्तरी भारत में रहने वाली जातियों में जागीरदारी की प्रथा प्रचलित थी, उसके समर्थन में मेरे पास बहुत सामग्री है और उस सामग्री के आधार पर मैं यह भी कह सकता हूँ कि यह प्रथा उत्तरी भारत से राजस्थान में आकर प्रचलित हुई। ईसा की सातवीं शताब्दी तक मुग़लों और पठानों के द्वारा राजपूतों का भयानक रूप से विध्वंस हुआ। फिर भी उनमें जो प्रथा प्रचलित हुई थी, वह निर्जीव नहीं हुई। राजस्थान के जिन-जिन राज्यों में इस शासन प्रणाली ने स्थान पाया था, उन राज्यों में वह प्रथा अब तक प्रचलित है। इस प्रथा के सम्बंध में मैंने मेवाड़ में प्रचलित शासन नीति का प्रमुख रूप से आश्रय लिया है। इसका कारण है। जहाँ तक मैंने समझा है, राजस्थान में मेवाड़ राज्य की जागीरदारी प्रथा शक्तिशाली थी, इस राज्य का मस्तक अन्य राज्यों की अपेक्षा ऊँचा था और मेवाड़ राज्य पर आक्रमणकारियों के जितने अत्याचार हुए थे, उतने राजस्थान के किसी दूसरे राज्य पर नहीं हुए थे। इतना सब होने पर भी मेवाड़ राज्य की सामन्त शासन प्रणाली सदा 65
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