सेंगर - इस वंश के सम्बंध में बहुत कम वर्णन मिलता है। इसे कभी प्रसिद्धि नहीं मिली। जमुना के किनारे जगमोहनपुर में सेंगरों का एक ही राज्य है। सीकरवाल इस वंश को भी कभी कोई ख्याति नहीं मिली। इस वंश का एक छोटा-सा इलाका चम्बल के किनारे पर यदुवाटी से मिला हुआ और वंश के नाम से सीकड़वाड़ कहलाता है और अबं ग्वालियर के राज्य में मिला लिया गया है। बैस- यह वंश छत्तीस राजवंशों में है। इस वंश में आज अगणित लोगों की संख्या है और उन्हीं के नाम से एक विस्तृत प्रदेश बैसवाड़ा कहलाता है, जो गंगा और जमुना के बीच में है। दाहिया - इस प्राचीन जाति के लोग सिन्धु नदी के किनारे, सतलुज के संगम के पास रहा करते थे। उनको छत्तीस राजवंशों में स्थान मिला है, परन्तु वे लोग अव कहीं पाये नहीं जाते । जैसलमेर के इतिहास में उनका उल्लेख पाया जाता है। जोहिया इस वंश के लोग भी दाहिया लोगों के करीब रहते थे। इस जाति के लोगों का अस्तित्व भी अव करीव-करीब मिट गया है। मोहिल - इस वंश के पुराने इतिहास के सम्बंध में इतना ही कहा जा सकता है कि वर्तमान बीकानेर राज्य की प्रतिष्ठा के पहले वे लोग एक विस्तृत प्रदेश में रहते थे और बीकानेर राज्य की प्रतिष्ठा करने वाले राठौड़ राजपूतों ने इस वंश के लोगों को उनके स्थानों से भगा दिया था। मालण, मालाणी और मल्लिया नाम की जातियाँ अब नष्ट हो गयी हैं। निकुम्प - सभी वंशावलियों में इस वंश की ख्याति लिखी गयी है। लेकिन उसका वर्णन इतना ही किया गया है कि गहलोतों से पहले इस वंश के लोग मांडलगढ़ के अधिकारी थे। राजपाली - वंशावलियों में इस वंश का उल्लेख राजपालिका अथवा पाल के नाम से किया गया है। वे लोग सौराष्ट्र देश में रहते थे और सभी प्रकार से वे सीथियन मालूम होते थे। सीथियन से उनकी उत्पत्ति के और भी प्रमाण मिलते हैं। राजपाली नाम से जाहिर होता है कि यह वंश प्राचीन पाल जाति की एक शाखा के सिवा और कुछ न था। दाहिरया कुमारपाल चरित्र के आधार पर इस वंश की गणना छत्तीस राजवंशों में की जा सकती है। इसके सम्बंध में अधिक कोई उल्लेख नहीं मिलता, सिवा इसके कि पहले पहल मुस्लिम सेना से चित्तौड़ में आक्रमण करने पर जो लोग उसकी रक्षा के लिए युद्ध में गये थे, उनमें देबिल का राजा दाहिर सरदार भी था। यह दाहिर दाहिरिया वंश का ही जाहिर होता है। दाहिमा - यह जाति कभी अपनी बहादुरी के लिये विख्यात हुई थी। लेकिन उस ख्याति का अब कहीं पता नहीं है। दाहिमा बयाने का अधिकारी था और चौहान सम्राट पृथ्वीराज के शक्तिशाली सामन्तों में से था। इस वंश के तीन भाई सम्राट पृथ्वीराज के यहाँ उच्च अधिकारी थे और उनमें बड़ा भाई पृथ्वीराज का मंत्री था। लेकिन किसी ईर्ष्या के कारण मारा गया था। दूसरा भाई पुंडीर लाहौर में एक सैनिक अधिकारी था। तीसरा भाई चामुंडराय उस अंतिम युद्ध में प्रधान सेनापति था, जब पृथ्वीराज घग्गर नदी के किनारे मारा गया था। शहाबुद्दीन के इतिहास लेखकों ने वीर दाहिमा चामुंडराय की वहादुरी की प्रशंसा की है और इस बात को स्वीकार किया है कि उसी की बहादुरी के कारण शहाबुद्दीन युद्ध में 61
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