झालामकवाण जाति के लोग भी सौराष्ट्र के प्रायद्वीप में रहते हैं। इस जाति के लोग राजपूत कहे जाते हैं। लेकिन उनके सूर्यवंशी, चंद्रवंशी अथवा अग्निवंशी होने का कोई प्रमाण हमारे पास नहीं है। इस जाति के लोग भारत में और विशेषकर राजस्थान में भी बहुत ही कम प्रसिद्ध हैं। सौराष्ट्र के बड़े भागों में झालावाड़ एक बड़ा हिस्सा है। उसमें झालामकवाण के ही लोगों की विशेषता है । झालावाड़ में बीकानेर, तलवद और धाँगद्रा नाम के बड़े-बड़े नगर हैं। यहाँ पर झाला कब आये और उनका पुराना इतिहास क्या है इसके निर्णय के लिये हमारे पास कोई विशेष सामग्री नहीं है परन्तु इतिहास की कुछ घटनायें इसके निर्णय में सहायता करती हैं। भारत में मुसलमानों के पहले आक्रमण के समय राणा को झाला जाति की ओर से युद्ध के लिये सैनिक सहायता प्राप्त हुई थी और पृथ्वीराज के इतिहास में झाला सरदारों के वर्णन आये हैं। झाला जाति की कई शाखायें हैं, उनमें मकवाणा प्रधान है। जेठवा, जेटवा अथवा कमरी - यह एक प्राचीन जाति है और इतिहास लेखकों ने इसे राजपूत माना है, यद्यपि झाला लोगों की तरह सौराष्ट्र के वाहर ये लोग भी वहुत कम प्रसिद्ध हैं। इस जाति के राजा का स्थान पोरवंदर है और वह राणा कहलाता है। प्राचीन काल में उसकी राजधानी गूमली थी। उसकी टूटी इमारतों में उस राज्य के वैभव का परिचय मिलता है। वहाँ की शिल्पकला यूरोप के शिल्प की बराबरी करती थी। जेठवों के बारे में भाटों से एक सौ तीस राजाओं की जानकारी होती है, जो वहाँ के सिंहासन पर बैठे। मिले हुये लेखों से जाहिर होता है कि आठवीं शताब्दी में यहाँ के एक राजा का विवाह दिल्ली की फिर प्रतिष्ठा करने वाले और उसको नया जीवन देने वाले तोमर राजा के यहाँ हुआ था। इन दिनों में जेठवा वंश का नाम कमर चल रहा था। कहा जाता है कि बारहवीं शताब्दी में उत्तर की दिशा से आक्रमण करने वालों ने जिस राजा को गूमली से निकाला था, उसका नाम सेहल कमर था। इसके बाद कमर वंश फिर जेठवा के नाम से प्रचलित हुआ। इस वंश के लोग सीथियन वंश के जाहिर होते हैं। उनका सम्बंध भारत की प्राचीन जातियों के साथ कुछ जाहिर नहीं होता, ऐसा मालूम होता है कि यह वंश एशिया की प्रसिद्ध जाति किमेरी अथवा यूरोप की किम्ब्री जाति की शाखा है। इस जाति की बहुत-सी बातें कुछ अनोखी सी मालूम होती हैं। वे लोग अपने आपको प्रसिद्ध वानर हनुमान का वंशज कहते हैं और इसके समर्थन में वे लोग अपने राजाओं की लम्बी पीठ की हड्डी का उदाहरण देते हैं। गोहिल यह एक प्रसिद्ध वंश है, जो सूर्यवंशी होने की बात कहता है । ये लोग पहले मारवाड़ में लूनी नदी के मोड़ के पास जूना खेड़गढ़ में रहते थे। खेरवा नाम के एक भील सरदार से इन लोगों ने यह स्थान अपने अधिकार में किया था और अंत में राठौड़ राजपूतों ने उनको वहाँ से भगा दिया। वहाँ से वे लोग सौराष्ट्र की तरफ जाकर पीरमगढ़ में रहने लगे। इसके बाद उनकी एक शाखा बगवा में जाकर रहने लगी और उनके राजा ने नन्दन नगर अथवा नान्दोद के राजा की लड़की से विवाह करने के बाद अपने श्वसुर के राज्य परं अधिकार कर लिया। सोमपाल से नरसिंह तक जो नान्दोदी में आजकल राजा है-सत्ताईस पीढ़ी मानी जाती है। दूसरी शाखा सिहोर में जाकर रहने लगी और उसने भावनगर तथा गोगो नगर आवाद किया । भावनगर माही की खाड़ी पर गोहिल के रहने का स्थान है और उन्हीं लोगों के नाम पर सौराष्ट्र के प्रायद्वीप का पूर्वी भाग गोहिलवाड़ा कहलाता है। यहाँ के राजा का प्रमुख कार्य व्यवसाय orta - 59
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