पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५८

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-- जनश्रुति के आधार पर कुछ लोगों का विश्वास है कि हूणों का निवास स्थान चम्बल नदी के पूर्वी किनारे बाडोली नामक स्थान में था। वहाँ पर अन्यान्य प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर इस जाति के राजा का वैवाहिक स्थान है जिसका नाम है, सेनगर चाओरी । उस राजा का अधिकार चम्बल नदी के दूसरे किनारे तक फैला हुआ था। यह जाति अभी नष्ट नहीं हुई और अभी तक वे इस देश में मौजूद हैं। यद्यपि उनमें अब बहुत परिवर्तन हो गया है और वे इस देश की अन्य जातियों के साथ बहुत कुछ मिल गये हैं। कट्टी अथवा काठी- इस जाति के सम्बंध में पहले लिखा जा चुका है और राजस्थान तथा सौराष्ट्र की वंशावली लिखने वाले उनको राजवंशों में स्वीकार करते हैं। पश्चिमी प्रायद्वीप में जो जातियाँ प्रसिद्ध मानी जाती हैं, उनमें एक यह जाति हैं । इस जाति के लोगों ने सौराष्ट्र का नाम बदल कर काठियावाड़ कर दिया है। काठियावाड़ में जो जातियाँ रहती हैं, उनमें इसी कट्टी अथवा काठी ने अपना अस्तित्व कायम रखा है। इस जाति की धार्मिक और सामाजिक रस्में तथा उनके शरीर की बनावट और मुखाकृति उनके सीथियन होने का प्रमाण देती हैं। सिकन्दर के समय इस जाति के लोग पंजाब के उस कोने में अपना अधिकार जमाये थे, जो स्थान पाँचों नदियों के संगम के पास है। उसी जाति के लोगों से सिकन्दर ने युद्ध किया, जिसमें वह किसी प्रकार बच गया था। जैसलमेर के इतिहास में वहाँ के लोगों ने कट्टी लोगों के साथ युद्ध किया था, उसका वर्णन किया गया है। बारहवीं शताब्दी में उनके अस्तित्व के और भी प्रमाण हैं। उस समय इस जाति के अनेक सरदार पृथ्वीराज और कन्नौज की सेना में मौजूद थे। कट्टी लोग अब तक सूर्य की पूजा करते हैं और युद्ध तथा आक्रमण उनको सहज ही प्रिय है । वे इसी प्रकार के काम कर सकते हैं। कप्तान मैक्समर्डी ने इस जाति के सम्बंध में लिखा है "कट्टी जाति के लोग अनेक बातों में राजपूतों से भिन्न हैं। वे स्वाभाविक रूप से निर्दयी हैं और बहादुरी में वे राजपूतों से भी अधिक हैं। शारीरिक शक्ति में उनका स्थान ऊँचा है। कद में वे साधारण आदमी की अपेक्षा लंबे होते हैं। उनका कद प्रायः छह फीट से अधिक होता है। उनके शरीर मजबूत और मेहनत से भरे होते हैं। उनके मुख पर सुन्दरता नहीं होती। लेकिन उनकी मुखाकृति में कट्टरता पायी जाती है। उनके जीवन में कोमलता किसी प्रकार की भी नहीं होती।" बल्ला और बाला- राजपूत वंशावली लेखकों ने बल्ला जाति को राजवंशों में माना है। भाटों के आधार पर इस जाति के लोगों का निवास स्थान सिंधु नदी के किनारे पाया जाता है। ये लोग अपने आप को सूर्य वंशी राजपूत कहते हैं, उनका कहना है कि हमारे पूर्वज रामचन्द्र के बड़े पुत्र लव के वंशज थे। उनकी प्राचीन बस्ती सौराष्ट्र के टाँक में थी। यह स्थान बहुत प्राचीन काल में गोंगी-पट्टन कहा जाता था। इन लोगों ने वहाँ के आस-पास के प्रदेशों को जीत कर अपने देश का नाम बल्ल क्षेत्र रखा और राजधानी का नाम बल्लभीपुर हुआ। इन लोगों ने बल्लाराय की उपाधि का प्रयोग किया। वे अपने आपको गहलोत राजपूतों की बराबरी का समझते हैं। यह भी संभव हो सकता है कि बल्ला गहलोतों की शाखा हो। इनका मुख्य देवता सूर्य था। इस प्रकार की अनेक बातें इनकी सीथियन लोगों से मिलती हैं। कट्टी - इस वंश के लोग अपनी शाखा बल्ल भी मानते हैं। तेरहवीं शताब्दी में बल्ला लोग मेवाड़ पर हमला करने के लिये जिम्मेदार थे। राणा हमीर ने चोटीला के बल्ला सरदार को मारा था। टाँक का मौजूदा राजा बल्ला है । - 58