हूण जाति लोगों ने अपनी स्त्रियों, बाल-बच्चों और सामान को सिंध सागर। भेज दिया और चार हजाः तथा कुछ लेखों के आधार पर. आठ हजार नावें गजनी की सेना से लड़ने के लिए तैया थीं। इन नावों ने जल में प्रवेश किया। दोनों ओर से युद्ध आरंभ हुआ। जिट लोगों के अनेक नावें डुबो दी गयीं, कुछ में आग लगा दी गयी जिसके लिए गजनी की नावों पर पहले से व्यवस्था थी। फल यह हुआ कि जिट लोग युद्ध से भागे, उनमें बहुत-से कैद कर लिये गये। जो लोग बचे, उनके द्वारा बीकानेर की स्थापना हुई। इस घटना के थोड़े ही दिनों के पश्चात् जिट लोगों का जो असली राज्य था, वह भी नष्ट हो गया और बहुत-से जिट लोगों ने भागकर भारत में शरण ली। सन् 1360 ईस्वी में तोगलताश तैमूर जेटी जाति का प्रधान था। 1369 ईसवी में उसकी मृत्यु हो गयी तो जेटी लोगों की प्रधानता की पदवी बड़े खान के नाम से चागताई तैमूर को मिली। सन् 1370 ईसवी में उसने एक जेटी जाति की राजकन्या के साथ अपना विवाह किया। इसके बाद जेटी लोग पंजाब में कायम रहे और आज तक लाहौर का प्रतापी राजा जिट वंशी है। उसका अधिकार उन सभी प्रदेशों में है, जहाँ पर पाँचवी शताब्दी में यूची लोग रहते थे और जहाँ पर गजनी से भागने पर यदुवंशी लोगों ने टाँक.लोगों के मिट जाने पर अपना अधिकार कर लिया था। जिट लोगों के घुड़सवारों और सीथियन लोगों के तरीके बहुत-कुछ मिलते जुलते हैं। राजस्थान के छत्तीस राजवंशों में जिन सीथियन जातियों को स्थान मिला है, उनमें हूण लोग भी हैं। इस जाति के लोग यूरोप में उत्पात और उपद्रव के लिए बहुत मशहूर रहे हैं। किसी भी उल्लेख से इस बात का निर्णय नहीं होता कि हूणों ने भारत पर कब आक्रमण किया, लेकिन यह तो निश्चित ही है कि जिन जातियों ने भारत पर आक्रमण किया था, उनमें यह जाति भी एक है और इस जाति के लोग आज भी सौराष्ट्र के प्रायद्वीप में पाये जाते हैं। इस देश के पुराने इतिहासों में और यहाँ के शिलालेखों में हूणों के सम्बंध में लगातार उल्लेख मिलते हैं। एक शिलालेख से पता चला है कि बिहार के एक राजा ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त करने के साथ-साथ इन हूणों को भी पराजित करके इनके अभिमान को नष्ट किया था। भारत में जब पहले-पहल मुसलमानों का आक्रमण हुआ था और मुसलमानों ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की थी, उसमें उनकी सेना के साथ अंगत्सी नाम का एक हूण सरदार भी था। डिगिग्नीज़ ने लिखा है कि अंगत हूणों और मुगलों के एक विशाल दल का नाम था और अबुलगाजी का कहना है कि चीन की विशाल दीवार जो तातार जाति के लोगों के संरक्षण में थी, उसी का नाम अंगती था। उसका अपना एक राजा था और उस राजा की बहुत प्रतिष्ठा थी। जिन देशों में हियागनो और ओह ओन अर्थात् तुर्क और मुगल जाति के लोग रहते थे, उन्हीं का नाम तातार था। तातार नाम तातान देश से सम्बंध रखता है। इस देश का विस्तार इर्टिश नदी के पास से लेकर अल्ताई पहाड़ों के बराबर पीत सागर के किनारे तक चला गया था। इन देशों के सम्बंध में हूण जाति के इतिहास-लेखक ने बहुत-सी बातों का वर्णन किया है। रोम के पतन का इतिहास लिखने वाले गिवन ने हूणों के उस समय का इतिहास लिखा है,जब उन लोगों ने यूरोप पर चढ़ाई की थी। कास्मस नामक यात्री के ग्रंथ के आधार पर डिएन्विल ने लिखा है कि भारत के उत्तरी भाग में श्वेत हूणों का अधिकार था। इसी आधार पर यह अनुमान किया जाना अनुचित न होगा कि इस जाति के कुछ लोग सौराष्ट्र और साड़ में भी रहते हों। सिंध सागर पंजाब के दोआबों में से एक है। 1 1. 57
पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।