मोरी, पुरमार और उनके वंशजों से सम्बंध रखते हैं। नाग और तक्षक को संस्कृत में सर्प कहते हैं और तक्षक वह वंश है जिसका वर्णन नागवंश के नाम से भारत के ऐतिहासिक वीरकाव्य-ग्रंथों में किया गया है। महाभारत में इन्द्रप्रस्थ के पांडु-वंशियों और उत्तर के तक्षक लोगों के युद्ध का वर्णन किया गया है। तक्षक के हाथ से परीक्षित का मारा जाना और उनके पुत्र एवं उत्तराधिकारी जनमेजय का तक्षकों के विनाश के लिये युद्ध करना सभी कुछ उस वर्णन में आता है। जैसलमेर के भाटी राजाओं के प्राचीन इतिहास में लिखा गया है कि जब वे लोग जावुलिस्तान से निकाल दिये गये तो उन लोगों ने टाँक जाति के लोगों से सिन्धु नदी के किनारे के देशों का राज्य छीन लिया और फिर वे वहीं पर रहने लगे। वहां की राजधानी शालमनपुर थी। इतिहास की इस घटना का समय युधिष्ठिर के सम्वत् का 3008वाँ वर्ष माना गया है। इस दशा में यह निश्चित है कि तोमर वंशी विक्रम को विजय करने वाला शालिवाहन अथवा सालवाहन-तक्षक जाति का था। उसी वंश का था, जिसको भाटी लोगों ने पराजित करके दक्षिण की ओर चले जाने के लिये विवश किया था। शेषनाग की अधीनता में तक्षक अथवा नागवंश के आक्रमण का समय ईसवी सन् लगभग छः अथवा सात शताब्दी पहले माना गया है। आबू महात्म्य में तक्षकों को हिमाचल का पुत्र माना गया है। इस प्रकार की सभी बातों से सावित होता है कि वे सीथियन जाति से सम्बंध रखते थे और उन्हीं के वंशजों में थे। यह पहले लिखा जा चुका है कि तक्षक मोरी वंश के लोग अत्यंत प्राचीन काल से ही चित्तौड़ के अधिकारी रहे थे। लेकिन कुछ पीढ़ियों के बाद जब गुहिलोतों ने मोरी लोगों को चित्तौड़ से निकाल दिया तो हिन्दुओं के इस स्वतंत्र और सुरक्षित स्थान पर मुसलमानों का आक्रमण हुआ। उस समय जिन राजपूत राजाओं ने चित्तौड़ की रक्षा करने के लिये मुसलमानों के साथ युद्ध किया, उनमें आसेरगढ़ के टाँक लोग भी थे, जिन्होंने इस घटना के पश्चात् लगभग दो शताब्दी तक आसेरगढ़ पर अपना अधिकार रखा। इसका प्रमाण यह है कि वहाँ का सरदार पृथ्वीराज की सेना में एक शक्तिशाली सेनापति था और उसका उल्लेख चन्द कवि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ में किया है और उसे झंडा वरदार आसेर का टाँक कहकर लिखा है। यह पुराना वंश जनमेजय का शत्रु और सिकन्दर का मित्र था। इस वंश में सेहारन नामक एक पुरुष था, जिसने अपना धर्म परिवर्तन किया और अपनी उत्पत्ति टाँक जाति को छिपा कर उसने अपनी जाति का नाम वजेहउलतुल्क जाहिर किया। उसका बेटा जाफर खाँ गुजरात के सिंहासन पर उस समय वैठा, जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था। जाफर के पहले गुजरात का अधिकारी फिरोज था। परन्तु उसकी निर्वलता का लाभ उठाकर जाफर ने उसका अधिकार छीन लिया और मुजफ्फर के नाम से वह गुजरात का शासक बन गया। उसके पोते ने उसे मार डाला और अनहिलवाड़ा की प्राचीन राजधानी हटाकर उसने अपने बनाये हुए नगर अहमदावाद में कायम की। टाँक इस जाति के लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन के बाद टाँक जाति का अस्तित्व राजस्थान में खत्म हो गया। जिट अथवा जाट राजस्थान के छत्तीस राजवंशों में जिट अथवा जाट का भी स्थान है। परन्तु इस जाति को लोग राजपूत नहीं मानते और न राजपूतों के साथ उनके कहीं। वैवाहिक सम्बंध ही पाये जाते हैं। लेकिन इस जाति के लोग भारत में सभी जगह पाये जाते हैं। ये लोग आमतौर पर खेती का काम करते हैं। पंजाब में इन लोगों को प्रायः जिट कहा। जाता है लेकिन गंगा और जमुना के किनारे वे जाट के नाम से संबोधित किये जाते हैं। इन लोगों में भरतपुर का राजा वड़ा सम्मान रखता है। सिंधु नदी के किनारे और सौराष्ट्र में इन लोगों को जट कहा जाता है। राजस्थान में जिन लोगों के द्वारा खेती होती है, उनमें अधिक 1 55
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