किसी समय इस आवू गिरि पर कुछ मुनि तपस्या कर रहे थे। दैत्यों ने उनको तंग करना शुरू कर दिया। वे मुनियों के तप और यज्ञ को भंग करने लगे। यह देखकर ब्राह्मणों ने दैत्यों को रोकने के लिये एक अग्निकुंड खोदा । लेकिन दैत्यों ने ऐसी आँधियाँ उठाई कि जिससे चारों दिशायें अंधकारपूर्ण हो गयीं और वहाँ पर मुनियों तथा ब्राह्मणों के द्वारा जो यज्ञ हो रहे थे, उनमें विष्ठा, रक्त, अस्थि और माँस की वर्षा होने लगी। इससे मुनि और ब्राह्मण बहुत घबराये। अंत में मुनियों और ब्राह्मणों ने अग्नि कुंड को प्रज्जवलित किया और दैत्यों के विनाश के लिए महादेव से प्रार्थना की। उस प्रार्थना के बाद अग्नि कुंड से एक पुरुष निकला। परन्तु वह देखने में योद्धा नहीं मालूम होता था इसलिये ब्राह्मणों ने उसे द्वारपाल बनाकर वहीं पर बैठा दिया। उसका जो नाम रखा गया, उसका अर्थ पृथिहार अथवा परिहार होता है। उसके बाद दूसरा पुरुष निकला, उसका नाम चालुकू हुआ। तीसरा पुरुष जो निकला, उसका नाम परमार रखा गया। वह दैत्यों से युद्ध करने गया, लेकिन वह पराजित हुआ। इसके बाद देवताओं से फिर प्रार्थना की गयी तो अग्नि कुंड से एक दीर्घकाय और उन्नत ललाट का पुरुष निकला। उसके सम्पूर्ण शरीर में युद्ध के वस्त्र थे। वह एक हाथ में धनुष और दूसरे में तलवार लिये था। उसका नाम चौहान रखा गया। चौहान को दैत्यों से लड़ने को भेजा गया तो उसने दैत्यों को पराजित किया। कुछ मारे गये और कुछ भाग गये। दैत्यों के सर्वनाश से मुनि और ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए। उस चौहान के नाम से उसके वंश का नाम चौहान वंश चला और उसी वंश में पृथ्वीराज चौहान पैदा हुआ। चौहानों के वंश-वृक्ष से पता चलता है कि चौहानों का आदि पुरुष अनहिल नाम का था। उससे लेकर पृथ्वीराज तक जो. भारत का अंतिम सम्राट था-सब मिलाकर उन्तालीस राजा चौहानों में हुए । चौहानों के इतिहास के अनुसार, अजयपाल चौहान ने अजमेर के दुर्ग का निर्माण किया था। चौहानों की राजधानियों में उनकी वहाँ पर भी एक राजधानी थी। चौहानों की चौबीस शाखायें हैं। उनमें बूंदी और कोटा के वर्तमान राजवंश अधिक प्रसिद्ध हैं। वे राजवंश हाड़ौती की शाखा में हैं और युद्ध में वहादुर रहे हैं। गागरोन और राधोगढ़ के खीची, सिरोही के देवड़े, जालौर के सोनगरे, सूर्यबाह और सांचोर के चौहान, पावागढ़ के पोवेचे लोग अपनी वीरता के लिये प्रसिद्ध रहे। चौहान वंश के सरदारों ने अपनी जन्म भूमि के सम्मान के लिए अपना सर्वस्व त्याग किया। इनमें कामयखानी, सुरवानी, लोवानी, कुरवानी और वैदवान लोग जो शेखावाटी में रहते हैं,बहुत प्रसिद्ध हैं। चौहानों की चौबीस शाखायें इस प्रकार हैं - चौहान, हाड़ा, खीची, सोनगरा, देवड़ा, थाबिया, संचोरा, गोएलवाल, भदौरिया, निर्वाण मालानी, पूर्विया, सूरा, मादड़ेचा, संक्रेचा, भूरेचा, वालेचा, तस्सेरा, चाचेरा,टोसिया, चाँदू, नुकुम्प, भावर और बंकट । चालुकू अथवा सोलंकी - इस वंश की ख्याति के सम्बंध में हमें ऐतिहासिक सामग्री अधिक नहीं मिली। भाटों की कथाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सोलंकियों का राज्य उस समय गंगा के किनारे सोरूँ में था, जब राठौर राजपूतों ने कन्नौज में अधिकार प्राप्त नहीं किया था। वंशावली के आधार पर उनके रहने का स्थान लोहकोट में था जो लाहौर का पुराना नाम है। चौहानों और सोलंकियों की मूल शाखा एक ही है। सोलंकीवंश का एक राजकुमार कल्यान से लाकर, अनहिलवाड़ा पट्टन के चावड़ा राजपरिवार का उत्तराधिकारी बनाया गया। उस समय अनहिलवाड़ा का स्थान भारत में ठीक उसी प्रकार प्रसिद्ध था, जिस प्रकार यूरोप में वेनिस का। अनहिलवाड़ा भारत में अपनी उपज के लिये केन्द्र हो रहा था, 52
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