राजकुमारी की एक भी न चली। उसके ससुराल चले जाने के बाद सूरतसिंह ने महाजन के सामन्तों को बुलाकर उस बालक की हत्या करने का आदेश दिया। वे सामन्त वहुत दिनों से सूरतसिंह के अनुयायी और पक्षपाती थे। परन्तु ऐसा करने से उन्होंने साफ-साफ इन्कार कर दिया। इसके लिए सूरतसिंह को जब और कोई रास्ता न मिला तो उसने स्वयं अपनी तलवार से राजसिंह के बालक को मार डाला। उस बालक के मारे जाने के बाद सूरतसिंह अपने सांभाग्य का निर्माण न कर सका। उस बालक की जिस प्रकार हत्या हुई, उसका समाचार बीकानेर के प्रत्येक घर में फैला और राज्य के प्रत्येक राठौर ने उस बालक के प्रति इस अपराध को सुनकर आँखों से आंसू गिराये। राजसिंह के दो भाई सुरतानसिंह और अजयसिंह भयभीत होकर जयपुर चले गये थे, सूरतसिंह के द्वारा राजसिंह के वालक के मारे जाने का समाचार उन्होंने सुना। अत्यन्त क्रोधित होकर उन दोनों भाइयों ने सूरतसिंह को इसका बदला देने का निश्चय किया और भटनेर में आकर दोनों भाइयों ने बीकानेर के सामन्तों को बुलाकर सूरतसिंह को सिंहासन से उतार देने की तैयारी की। सूरतसिंह के इस अक्षम्य अपराध को सभी सामन्त जानते थे। लेकिन जिन सामन्तों को अनैतिक रूप से भूमि और सम्पत्ति देकर सूरतसिंह ने अपने पक्ष में कर रखा था, वे सूरतसिंह के विरोध में सुरतानसिंह और अजबसिंह की सहायता करने का साहस न कर सके। परन्तु भाटी लोग खुलकर दोनों भाइयों की सहायता करने के लिए तैयार हो गये। वह समाचार बीकानेर में सूरतसिंह को मिला। उसने सुरतानसिंह और अजयसिंह को युद्ध की तैयारी का मौका नहीं दिया और उसने अपनी सेना लेकर एक साथ उन पर आक्रमण कर दिया। बागोर नामक स्थान में दोनों ओर से भयानक युद्ध हुआ। तीन हजार भाटी लोगों ने सूरतसिंह के विरुद्ध सुरतानसिंह और अजवसिंह का साथ देकर युद्ध किया था। उनके मारे जाने पर सूरतसिंह की विशाल सेना विजयी हुई। विरोधियों का सर्वनाश करके और युद्ध में विजयी होकर उस युद्ध भूमि में सुरतसिंह ने एक दुर्ग का निर्माण कराया, जिसका नाम रखा गया, फतहगढ़। सूरतसिंह के जीवन में जो बाधायें थी, वे अब सब की सब समाप्त हो चुकी थी। सूरतसिंह को अव किसी का भय न था। इसलिए सभी प्रकार निर्भीक होकर उसने शासन का कार्य आरम्भ किया। उसने सजातीय वौदावत लोगों के राज्य पर आक्रमण किया और वहाँ से उसने पचास हजार रुपये कर के रूप में वसूल किये। सूरतसिंह ने सुना था कि चूरू के सामन्त सुरतानसिंह और अजबसिंह को युद्ध में सहायता करेंगे। इसलिए उसने चुरू पर फिर से आक्रमण किया। बीकानेर की सेना ने चुरू पहुँचकर भयानक रूप से वहाँ पर लूट की। उसके बाद कई राज्यों में लूट मार करते हुए सूरतसिंह ने भादरां के करीब छानी राज्य के सामन्तों के दुर्ग पर आक्रमण किया। वहाँ के सामन्तों ने धैर्य के साथ सूरतसिंह का सामना किया। बीकानेर की सेना छः महीने तक उस दुर्ग को धेरै पड़ी रही और अन्त में निराश होकर वहाँ से बीकानेर लौट आयी। सूरतसिंह अपने विरोधियों का दमन करके निर्भीक हो गया था और राज्य के शासन को मजबूत करने के लिए उसने योजना बनानी आरम्भ कर दी थी। परन्तु राज्य की प्रजा उससे 546
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