- राजपूतों में इस प्रकार के चरित्र का कभी अभाव नहीं रहा। मेवाड़ के प्राचीन निवासी भीलों ने गहलोत वंश के प्रथम राजा के सामने आत्म-समर्पण किया था और जिस प्रकार उन भीलों ने उस समय राजा को राजतिलक करके अधीनता स्वीकार की थी, उदयपुर के राणा के वंश में आज तक उन बातों को महत्त्व दिया जाता है। अब तक अभिषेक के समय मेवाड़ में ओगना भीलों का प्रतिनिधि अपने हाथ के अंगूठे को काट कर उसके रक्त से राजा के मस्तक पर तिलक करता है और वह राजा को सिंहासन पर विठाता है। उन्दरी नामक भीलों का प्रतिनिधि अपने पूर्वजों के समान अभिषेक के समय चाँदी के एक पात्र में धान, दूब और रुपये रखकर भेंट में देता है। जयपुर के प्राचीन निवासी मीणा लोग भी राजा के अभिषेक के समय कुछ इसी प्रकार की प्रणाली का अब तक अनुकरण करते हैं। बीका के द्वारा प्रार्थना स्वीकार करने पर गोदारा के जाटों ने आत्म-समर्पण किया था और अधीनता स्वीकार करके उनके प्रतिनिधि ने जिस प्रकार बीका के मस्तक पर राजतिलक किया था, राजा के अभिषेक के समय आज तक गोदारा के जाटों के वंशज उसी प्रकार बीकानेर में राजतिलक किया करते हैं और अभिषेक के समय सोने की पच्चीस मुद्राएं भेंट में देते हैं। बीका में न केवल युद्ध करने की शक्ति थी, बल्कि उसमें नैतिक बल भी था। पराजित करके जिन जातियों को उसने अपने अधिकार में किया था, उनके सम्मान का वह सदा ख्याल रखता था। इसके सम्बन्ध में उसके जीवन की एक छोटी-सी किन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख करना बहुत आवश्यक मालूम होता है। बीकानेर की राजधानी का निर्माण करने के लिए उसने जो स्थान पसन्द किया था, उसका अधिकारी एक जाट था। उस जाट से बीका ने उस स्थान की माँग की और कहा- "राजधानी बनाने के लिए यदि आप यह स्थान हमें दे देंगे तो अपने और आपके नाम को जोड़ कर मैं इस राज्य का नाम रखूगा।" उस जाट ने हर्षपूर्वक बीका की इस मांग को स्वीकार कर लिया। इसके बाद राजधानी का निर्माण हुआ और मरुभूमि में बीका ने जिस राज्य की प्रतिष्ठा की, उसका नाम बीकानेर रखा गया। उस जाट का नाम नेरा था। बीका ने उस जाट की उदारता को निरन्तर कायम रखने के लिए अपने नाम के साथ उसके नाम को सम्मिलित करके बीकानेर नाम रखा। कृतज्ञता मनुष्य के चरित्र का सबसे ऊँचा गुण है। किसी की सहायता और उदारता को भुला देना अथवा उसकी अवहेलना करना मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा अपराध है। इस प्रकार का अपराधी अपने जीवन में कभी उन्नति नहीं करता। अन्य गुणों के साथ-साथ बीका में कृतज्ञता का एक महान् गुण भी था और अपने इन्हीं गुणों के कारण वह बीकानेर राज्य की प्रतिष्ठा कर सका। दीपावली और होली के अवसर पर शेखासर और रूणियाँ के प्रधान बीकानेर के राजा को तिलक करने के लिए आते हैं। रूणियाँ का प्रधान चाँदी के पात्र में चन्दन आदि से टीका करने की सामग्री तैयार करता है और शेखासर का प्रधान उस पात्र को अपने हाथ में लेकर राजा के मस्तक पर तिलक करता है। इसके बदले में उन प्रधानों को राजा की तरफ से सोने की मोहरें और रुपये भेंट में दिये जाते हैं। जाटों के इन प्रधानों द्वारा तिलक हो जाने के बाद राज्य के सामन्त लोग तिलक करते हैं। इस प्रकार की प्रथायें बीकानेर राज्य में अब तक मौजूद हैं और वे राजा के प्रति प्रजा की राजभक्ति का प्रमाण देती हैं। 536
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