यदुवंश से जाड़ेजा। नाम की एक शाखा चली और उसे भी बहुत ख्याति मिली। वे लोग भी कृष्ण के ही वंशधर माने गये श्याम अथवा साँवले होने के कारण कृष्ण का नाम श्याम भी पड़ा और उन्हीं के वंशधर होने के कारण जाडेजा वंश के लोग अपने आपको श्याम पुत्र अथवा सामपुत्र कहते थे। इन जाति के लोगों में जो राजा हुए, उनकी उपाधि सम्भा थी। इन श्याम पुत्रों के सम्बंध में अनेक प्रकार की बातें लिखी हुई मिलती हैं। उनमें यह भी उल्लेख पाया जाता है कि बहुत समय के बाद श्याम वंशियों ने अपने सम्बंध में स्वीकार किया कि हम लोग शाम अथवा सीरिया से आये हैं और ईरान के जमशेद वंशी हैं। इसी आधार पर शाम के स्थान पर जाम हो गया। इस जाम के नाम पर ही जाम राज्य की भी प्रतिष्ठा हुई। यदुवंश की आठ शाखायें हैं - (1) यदु करौली के राजा, (2) भाटी जैसलमेर के राजा, 3) जाडेजा कुच्छ भुज के राजा, (4) समैवा सिंध के मुसलमान, 5) मुइँचा, (6) विदमन, (7) बद्दा और (8) सोहा। अंत की इन तीनों शाखाओं का कोई विवरण नहीं मिलता। 1 तोमर वंश वास्तव में यदुवंश की एक शाखा है, परन्तु उसे छत्तीस वंशों में स्थान दिया गया है। युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में दिल्ली पड़ा। आठवीं शताब्दी तक वह सुनसान रहा। सन् 742 ईसवी में अनंगपाल तोमर ने फिर से उसके निर्माण का काम किया। उसके बाद उसके बीस वंशज वहाँ के राजसिंहासन पर बैठे इन वीस में अंतिम राजा का नाम भी अनंगपाल ही था, जिसने पुत्रहीन होने के कारण सन् 1164 ई. में अपनी लड़की के पुत्र पृथ्वीराज को अपने राज्य का अधिकारी बनाया। राजपूतों में राठौड वंश बहुत प्रसिद्ध हुआ। लेकिन उसकी उत्पत्ति के सम्बंध में कई प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। राठौड वंश के लोग अपनी उत्पत्ति रामचंद्र के पुत्र कुश से बतलाते हैं। इस आधार पर वे लोग सूर्यवंशी होने चाहिए। लेकिन उस वंश के भाट लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते । उनका कहना कुछ और है, जिनको लिखने की यहाँ पर आवश्यकता नहीं मालूम होती। राठौडों का प्राचीन स्थान गांधीपुर अर्थात् कन्नौज है। वहाँ पर इस वंश के लोग पाँचवीं शताब्दी में राज्य करते थे और तातारियों ने जब भारत को विजय किया तब, उसके कुछ पहले उन लोगों ने दिल्ली के अंतिम तोमर राजा और फिर चौहान राजाओं के साथ युद्ध किया था। आपसी ईर्ष्या के कारण दिल्ली का चौहान राजा मारा गया और उसकी पराजय से उत्तर-पश्चिम की सीमा की रक्षा का फाटक खुल जाने से कन्नौज का नाश हुआ। कन्नौज के उस सर्वनाश में वहाँ का अंतिम राजा जयचंद जब गंगा में डूबकर मर गया तो उसके पुत्र ने मारवाड़ की मरुभूमि में जाकर अपनी जान बचायी । जयचन्द के इस लड़के का नाम सिहाजी था। उसने मारवाड़ में राठौड वंश की प्रतिष्ठा की। राठौड़ राजपूतों की चौबीस शाखायें हैं-धाँधला, भडेल, चकित, धूहाड़िया, खोखरा, बदरा, छाजीढ़ा, रामदेवा, कबरिया, हटदिया, मालावत, सुंडू, कटेचा, मुहोली, गोगादेवा, महेचा, जयसिंहा, मुरसिया, चौबसिहा, जोरा आदि । कुशवाहा-रामचन्द्र के पुत्र कुश के वंशज कुशवाहा कहलाते हैं। इस वंश का नाम कुशवंशी भी है जैसे मेवाड़ के राजपूत लववंशी माने जाते हैं। 1. जाडेजा राजपूतों के सम्बंध में अनेक प्रामक बातों का उल्लेख मिलता है । जाडेजा जाड़ा के और सामेजा के वंशज थे। वे लोग शाम अथवा सीरिया से न आये थे। यदुवंशी कृष्ण से इन वंशों की उत्पत्ति हुई। कुछ अधिकारियों का इस प्रकार कहना है। -अनुवादक 49
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