यह पहले लिखा जा चुका है कि भारतवर्ष की मरुभूमि में रहने वाले जाटों की संख्या बहुत अधिक थी। वे साहसी, लड़ाकू, शूरवीर भी थे। इस प्रकार उनके शक्तिशाली होने के बाद भी राठौरों के द्वारा आसानी से उनकी पराजय के कारण थे। समस्त जाट छ: शाखाओं में विभाजित थे। इन वंशों के जाटों में आपसी फूट बहुत बढ़ गयी थी और वे स्वयं एक दूसरे के लिए घातक हो रहे थे। इन्हीं दिनों में वीका ने वहाँ के छोटे-छोटे कितने ही राज्यों को जीत कर अपना आतंक फैला दिया और उसके वाद वह जाट राज्यों की तरफ आगे बढ़ा। जाटों का प्रत्येक वंश अलग-अलग शासन करता था, उनमें आपसी फूट और द्वेष की जानकारी बीका को हो चुकी थी। इसलिए उसने उनकी फूट का सभी प्रकार से लाभ उठाया। जाटों पर सहज ही राठौरों की सफलता का एक और भी कारण था। बीका के भाई वीदा ने पहले ही मरुभूमि के मोहिलों पर आक्रमण करके उनको पराजित किया था। मोहिलों के साथ बहुत पहले से जाटों की शत्रुता चली आ रही थी। इन मोहिलों ने मरुभूमि में आक्रमण के दिनों में वीका का साथ दिया था, उन मोहिलों के द्वारा बीका को ऐसी बहुत-सी बातों की जानकारी हुई कि जिनका लाभ उठाकर वीका ने जाटों को परास्त किया और अधिकांश जाट वंशी राज्यों ने भयभीत होकर आत्म-समर्पण किया। वहाँ के जाट राज्यों में जैसलमेर का एक राज्य भी था। वहाँ के भाटी लोग जाटों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किया करते थे। मोहिलों और भाटी लोगों की शत्रुता के कारण भी विवश और भयभीत होकर जाटों ने वीका की अधीनता स्वीकार कर ली थी। उन्हीं दिनों में गोदारा के जाटों ने भी अपने राज्य के सम्बन्ध में निर्णय किया था। उन लोगों ने एकत्रित होकर और निर्णय करके अपने दो प्रतिनिधियों को वीका के पास भेज कर आत्म-समर्पण करने के लिए निम्नलिखित शर्ते उपस्थित की- 1. जोहिया और दूसरे राज्यों के जो जाट लोग हमारे साथ शत्रुता रखते हैं, उनके अत्याचारों से बीका को हमारी रक्षा करनी होगी। 2. राठौरों को ऐसा प्रवन्ध करना होगा, जिससे हमारे शत्रु भाटी लोग कभी हम लोगों पर आक्रमण नहीं कर सकें। 3. हम लोगों के व्यक्तिगत और सामाजिक स्वत्व सदा सुरक्षित रहेंगे। उनमें कभी किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाएगा। गोदारा के जाटों की इस प्रार्थना को बीका ने स्वीकार कर लिया। उसके बाद वहाँ के जाटों ने आत्म-समर्पण किया और वीका को अपना राजा मान लिया। वहाँ के जाटों के सम्बन्ध में निर्णय हुआ कि गोदारा के प्रत्येक घर से एक-एक रुपया कर के रूप में लिया जायेगा और वहाँ के प्रत्येक किसान से दो रुपये कर के रूप में लिए जायेंगे। गोदारा के जाटों ने इन शर्तों को स्वीकार करके राठौरों की अधीनता स्वीकार की। गोदारा के जाटों को किसी भी अवस्था में बीका के सामने आत्म-समर्पण करना था, क्योंकि विना किसी आक्रमण और युद्ध के वहाँ के जाटों ने आत्म-समर्पण करने के लिए आपस में निश्चय कर लिया था। उनकी इस निर्वलता का बीका सभी प्रकार लाभ उठा सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और उसने गोदारा के जाटों की माँग को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। राठौरों के उत्तम चरित्र का यह एक सजीव प्रमाण है। 535
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