इक्ष्वाकु के उस वंशज ने अपने वंश की प्रतिष्ठा की और उसके वंशज विजय ने कई पीढ़ियों के पश्चात् विजयपुर। बसाया। इस वंश के लोगों के द्वारा. वल्लभी राज्य की प्रतिष्ठा नहीं हुई। लेकिन वे वल्लभी के राजा कहलाये । वहाँ का एक सम्वत् भी चला और उसका आरंभ विक्रम सम्वत् 375 में हुआ। गजनी अथवा गपनी, वल्लभी राज की दूसरी राजधानी थी। उसका अंतिम राजा शिलादित्य मारा गया था और छठी शताब्दी में उसका परिवार वहाँ से निकाल दिया गया था। गुहादित्य, शिलादित्य का लड़का था, जो उसके मरने के बाद पैदा हुआ था। उसने ईडर नामक छोटे से राज्य पर अधिकार कर लिया और उसी के नाम पर उसका वंश चला। उस समय से यह सूर्यवंशी कुल गहलोत कहलाने लगा। उसके कुछ समय बाद गहलोत वंश अहाड़िया वंश कहलाया और बारहवीं शताब्दी तक इसी नाम से वह प्रसिद्ध रहा। इस वंश के राहप नामक व्यक्ति ने चित्तौड़ की गद्दी पर अपना अधिकार छोड़कर डूंगरपुर में एक अलग राज्य बसाया । उस राज्य के लोग अब तक अपने आप को अहाड़िया के वंश वाले बतलाते हैं। राहप के छोटे भाई माहप ने अपने राज्य की राजधानी सीसोदा में कायम की और उस समय से उसके वंशज सीसोदा नामक स्थान के नाम पर सीसोदिया कहलाये। उस समय से अब तक यह वंश इसी नाम से विख्यात है। लेकिन यह सीसोदिया उपवंश गहलोत की शाखा माना जाता है । गहलोत वंश चौबीस शाखाओं में विभक्त हो गया था और उनमें थोड़ी शाखायें अब अपना अस्तित्व रखती हैं। चौबीस शाखायें इस प्रकार हैं (1) अहाड़िया डूंगरपुर में, (2) मांगलिया मरुभूमि में, (3) सीसोदिया मेवाड़ में, (4) पीपाड़ा मारवाड़ में, (5) कैलावा, (6) गद्दोर, (7) धोरणिया, (8) गोंधा, 9) मगरोपा, (10) भीमला, (11) कंकोटक, (12) कोटेचा, (13) सोरा, (14) ऊडड़, (15) ऊसेवा, (16) निरूप, (ये 5 से 17 तक बहुत कम संख्या में थे और अब उनके अस्तित्व नहीं मिलते), (17) नादोडया, (18) नाद्योता, (19) भोजकरा, (20) कुचेरा, (21) दसोद, (22) भटेवरा, (23) पाहा और (24) पूरोत । इनमें 17 24 तक वंश बहुत पहले से समाप्त हो गये थे। यदु जिससे यादव वंश चला, सभी वंशों में अधिक प्रसिद्ध था और चन्द्रवंश के आदि पुरुष बुध के वंशजों का यही वंश बाद में प्रसिद्ध हुआ। कृष्ण का देहांत हो जाने पर युधिष्ठिर और बलदेव के दिल्ली और द्वारका से चले जाने पर यदुवंशी लोग मुल्तान के रास्ते सिंधु के उस पार चले गये। उनके साथ कृष्ण के पुत्र भी गये, उन्होंने जाबुलिस्तान पहुँच कर गजनी नगर की प्रतिष्ठा की और समरकंद तक अपना विस्तार किया। यादवों ने सिन्धु के पार जाकर पंजाब में अधिकार कर लिया और सलभनुपुर को आबाद किया। लेकिन उसके कुछ बाद वे वहाँ से चलकर भारत की मरुभूमि में पहुँच गये और वहाँ से लगंधा, जोहिया और मोहिल आदि लोगों को भगाकर तन्नौट देरावल तथा सम्बत् 1212 में जैसलमेर की प्रतिष्ठा की। यही जैसलमेर कृष्ण के वंशजों भट्टी अथवा भाटी लोगों की अब तक राजधानी है। यहाँ पर भट्टी नाम का एक वंश चला, जिसे भट्टी ने चलाया। इन लोगों ने गारह नदी के दक्षिण की ओर के सभी देशों पर अधिकार कर लिया। लेकिन उनके प्रभाव को राठौड लोगों ने पहुँचकर कम कर दिया। यह स्थान विराट के साथ मिलाकर व्यवहार में आता है, अर्थात् विजयपुर विराट गढ़। . । 1. 48
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