न अखयचन्द मानसिंह के इस आदेश को सुनकर एक साथ भयभीत हो उठा। उसने अपने साथ के लोगों के परामर्श से चालीस लाख रुपये का हिसाव लिखकर तैयार किया। राजा मानसिंह ने उस पत्र के अनुसार पूरी सम्पत्ति लेकर अपने अधिकार में कर ली और अखयचन्द के साथ जिनको कैद किया गया था, मानसिंह की आज्ञा से उनको प्राण दंड दिया गया। नग जी जो राज्य का किलेदार था और मूल जी धाँधल के साथ जो एक जागीरदार था को विष का प्याला पिलाकर उसके जीवन का अंत किया गया और फतह पोल द्वार के बाहर उसका मृत शरीर फिकवा दिया गया। धाँधल का भाई जीव राज और विहारीदास खींची का एक दर्जी भी मारा गया। व्यास शिवदास और श्रीकृष्ण ज्योतिषी को मार कर संसार से विदा किया गया। मानसिंह ने उन सभी लोगों के साथ कठोर व्यवहार किया, जिन्होंने अखयचन्द के साथ मिल कर राज्य में अत्याचार किये थे और प्रजा को लूटकर धन एकत्रित किया था। इस प्रकार के सभी लोग कैद किये गये। उनके पास का धन ले लिया गया और उनमें अधिकांश लोग जान से मारे गये। उनमें बहुत थोड़े आदमी ऐसे थे जो अधिक थे उनको छोड़ दिया गया। नगजी किलेदार और मूल जी जागीरदार दोनों छत्रसिंह के शासन काल में राज्य के कर्मचारी थे। उस समय इन दोनों ने षड़यंत्रों के द्वारा राज्य का वहुत-सा धन लूटा था और उसके बाद अपने नगरों में जाकर उन दोनों ने दुर्ग वनवाये थे। राजा मानसिंह ने सिंहासन पर बैठकर यह प्रकाशित किया कि जिन लोगों ने राज्य में किसी प्रकार का अपराध किया है उनको क्षमा करके उनके पद उनको दिये जायेंगे। उस समय नग जी और मूल जी अपने नगरों से जोधपुर की राजधानी आ गये थे। उनके आने पर उनको कैद कर लिया गया और जो सम्पत्ति वे अपने साथ लेकर चले गये थे, उनसे मांगी गयी। प्राणों के भय से उन दोनों ने वह सम्पत्ति लाकर दे दी। उसे लेकर उन दोनों को दुर्ग के ऊँचे वुों से नीचे फेंक दिया गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। कहा जाता है कि इस प्रकार जिन लोगों ने राज्य की प्रजा को लूट कर धन इकट्ठा किया था, उससे जो सम्पत्ति राजा मानसिंह को मिली वह एक करोड़ रुपये से कम न थी। लेकिन यदि वह सम्पत्ति इसकी आधी भी रही हो तो भी इस समय राजा मानसिंह के लिए बड़ी रकम सावित हुई। राजा मानसिंह ने अखयचन्द के साथ-साथ जितने भी लोगों को राज्य में अत्याचार करने के कारण अपराधी समझा था, उन सभी से लूटी हुई सम्पत्ति को वापस लेकर उनको मृत्यु दंड दिया। इससे राज्य में भयानक आतंक पैदा हो गया। राजा मानसिंह ने राज्य के अन्य सम्मानित सामन्तों को भी दंड देने का इरादा किया। पोकरण का सामन्त सालिम सिंह, नीमाज का सामन्त सुरतान सिंह, आहोर का सामन्त ओनाड सिंह भी अखयचन्द के साथ शासन की व्यवस्था में शामिल था। साधारण श्रेणी के कितने ही सामन्त जोधपुर के दरवार में रोजाना जाकर भाग लेते थे। इन सभी सामन्तों की सम्मतियाँ लेकर अखयचन्द राज्य का शासन करता था। अखयचन्द के कैद हो जाने पर ये सभी सामन्त भयभीत हो उठे। इन भयभीत सामन्तों के पास राजा मानसिंह ने दूत के द्वारा संदेश भेजा कि उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही न की जाएगी। अखयचन्द और उसके साथियों ने राज्य में जो अत्याचार किया था, उनको दंड देना आवश्यक था। मानसिंह का यह संदेश पाने के वाद भी उन सामन्तों को विश्वास न हुआ। उनको पहले ही इस बात का पता लग गया था कि मानसिंह ने हम सब लोगों का सर्वनाश करने के लिए पड़यंत्र का एक जाल फैला दिया है। उनको यह भी मालूम हो चुका था कि राजा मानसिंह ने पोकरण के सामन्त सालिम सिंह के वंश को मिटा देने के लिए निश्चित इरादा कर लिया है। 513
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