भाव गया। नवम्बर के महीने में मैं मारवाड़ गया और जोधपुर पहुँचकर मैंने वैतनिक सेना को भयानक कष्टों में देखा। उस समय मैंने सेना के पिछले वेतन में तीस प्रतिशत दिलाने की कोशिश की। सेना ने इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन तीन सप्ताह के वाद जोधपुर से मेरे चले जाने पर उस सेना को जो आशा हुई थी, वह भी जाती रही। जोधपुर में बढ़ी हुई अराजकता के कारण लोगों को किसी प्रकार का डर न रह गया था। इसका कारण यह था कि अपराधियों को कोई दंड देने वाला न था। ऐसा मालूम होता था कि मानो इस राज्य से इंसाफ उठ गया है। इसका प्रमाण यह हुआ कि यदि कोई किसी को मार डालता तो हत्या करने वाले के विरुद्ध कोई कुछ कहने वाला न था। ठीक यही अवस्था दूसरे अपराधों की भी थी। समस्त राज्य विना किसी शासन के चल रहा था। जो निर्वल थे, वे बुरी तरह से सताये जा रहे थे। प्रजा के चीत्कार को सुनने वाला कोई न था । भोजन के अभाव में सैनिक मर रहे थे। राजपूत अपने कर्तव्यों का पालन भूल गये थे और खाने-पीने के अभाव में उचित अनुचित का ख्याल भूलकर वे कुछ भी खा लेते और अपने प्राणों की रक्षा करते थे। राजा मानसिंह कहने के लिए शासक था, परन्तु राज्य की अव्यवस्था के प्रति उसने अपने नेत्र वन्द कर लिये थे। जोधपुर में तीन सप्ताह रह कर मैं राजा मानसिंह से मिला। उस भेंट में राज्य की वर्तमान परिस्थितियों पर बहुत-सी बातें हुई। हम दोनों में मित्रता का पैदा हुआ। मानसिंह ने अपनी वीती हुई विपदाओं की घटनायें मुझे सुनायी। मैं वड़ी सहानुभूति के साथ उनको सुनता रहा और अन्त में यह कह कर मैं राजा मानसिंह से विदा हुआ -"आपकी इन समस्त विपदाओं को मैं भली प्रकार जानता हूँ। आपने उन दिनों में बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया और उन कष्टों से छुटकारा पाया। उस समय की सभी घटनाओं को मैं जनता हूँ। आपने दूरदर्शिता से काम लेकर अपने शत्रुओं का नाश किया। अव आप अंग्रेज सरकार के मित्र हैं। इसलिए आपको हमारी सरकार का विश्वास करना चाहिए। मैं इस बात को खूब समझता हूँ कि आपके सामने जितनी भी कठिनाइयाँ हैं वे सभी थोड़े दिनों में दूर हो जायेंगी।" राजा मानसिंह ने सावधानी के साथ मेरी बात को सुना और प्रसन्न होकर उत्तर देते हुए उसने कहा -“आप जिस शुभकामना.लेकर को लेकर मेरे पास आये हैं, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। साथ ही आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस राज्य में जो कठिनाइयाँ आप देख रहे हैं एक वर्ष के भीतर ही उनका अंत हो जायेगा।" मानसिंह की इस वात को सुनकर मैंने कहा “यदि आप चाहेंगे तो इसके आधे दिनों में ही आपके राज्य की सारी कठिनाइयाँ खत्म हो जायेगी।" मारवाड़ राज्य में इन दिनों जो अव्यवस्था थी, वह राज्य की सभी वातों में भयानक हो गयी थी। लेकिन इस समय जो सुधार बहुत जरूरी हो रहे थे, उनको राजा मानसिंह के सामने मैंने संक्षेप में उपस्थित किया और वे इस प्रकार थे : 1. शासन की शिथिलता को दूर करना। राज्य की आर्थिक दशा सुधारना, जो सर्वसाधारण के असंतोष का कारण बन गयी है। 3. राज्य की सेना को शक्तिशाली बनाना, जिसके ऊपर शासन की व्यवस्था निर्भर है। इस ग्रंथ के मूल लेखक कर्नल टॉड को सन् 1819 ईसवी में अंग्रेज गर्वनर जनरल ने मारवाड़ राज्य का भी राजनैतिक एजेंट नियुक्त किया था।- अनुवादक 2. 1. 511
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