का उसने विश्वास छोड़ दिया और उसका यह अविश्वास यहाँ तक बढ़ा कि वह अपनी रानी को भी अपना शत्रु समझने लगा। न जाने क्यों मानसिंह को विश्वास हो गया कि महलों से लेकर वाहर तक राज्य में सभी लोग मुझे मार डालना चाहते हैं। उसके इस विश्वास का आधार क्या था, यह नहीं कहा जा सकता। परन्तु उसके हृदय में सभी के लिए इस प्रकार का अविश्वास पैदा हो गया। इस अविश्वास के कारण ही उसने भोजन करना बन्द कर दिया और अपने भोजन का कार्य उसने अपने विश्वासी अनुचर पर छोड़ दिया। वह जो कुछ खाना लाकर उसे देता था, मानसिंह उसी को खाकर और एकान्त में रहकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा। मानसिंह के जीवन की यह विरक्ति लगातार बढ़ती गयी। उसने स्नान करना और बाल बनवाना भी बन्द कर दिया। इन दिनों में राज्य के शासन में बड़ी गड़बड़ी पैदा हो रही थी। इसलिए राजा के अभाव में मन्त्री कार्य संचालन करते रहे । आवश्यकता पड़ने पर वे लोग राजा मानसिंह के पास जाकर जब कुछ बातें करते थे तो मानसिंह मौन रहकर उनको सुन लेता। लेकिन कुछ उत्तर न देता। मानसिंह की उन्माद अवस्था के सम्बन्ध में दो प्रकार के मत पाये जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि गुरुदेव देवनाथ के मारे जाने से उसे अत्यधिक मानसिक आघात पहुँचा था। कुछ लोगों का विश्वास है कि वास्तव में उसको उन्माद नहीं हुआ था। राज्य की विरोधी परिस्थितियों से वह बहुत ऊब गया था और उन्हीं दिनों में देवनाथ के मारे जाने के बाद उसके एकमात्र बेटे छत्रसिंह की मृत्यु हुई थी। जीवन के इस विरोधी वातावरण में उसने एकान्त जीवन व्यतीत करना आरंभ किया था। कुछ भी हो, मानसिंह ने अपने आपको राज्य के शासन से सभी प्रकार अलग कर रखा था। छत्रसिंह की मृत्यु के बाद राजा मानसिंह की मानसिक विरक्ति अधिक बढ़ गयी। उस समय मारवाड़ के सामन्तों ने पोकरण के स्वर्गीय सवाई सिंह के पुत्र सालिम सिंह को बुलाकर जोधपुर के शासन का प्रधान बनाया और उसने शासन का प्रबन्ध अपने हाथ में लेकर राज्य में अपने प्रभुत्व का विस्तार किया। राजकुमार छत्रसिंह के जीवन काल में एक बार दिल्ली में एक बैठक हुई थी। उसमें मारवाड़ की वर्तमान अशान्ति को मिटाने और शांति कायम करने के सम्बन्ध में विचार होने को था। यह बैठक मेरे द्वारा आमंत्रित हुई थी। उस बैठक में भाग लेने के लिए जोधपुर दरबार से एक दूत भेजा गया था। दिल्ली की उस बैठक का परिणाम निकलने के पहले ही छत्रसिंह की मृत्यु हो गयी। जोधपुर का शासन सालिम सिंह के अधिकार में चले जाने पर मारवाड़ के अधिकांश सामन्त अपने भविष्य को बड़ी सावधानी से देखने लगे। सालिम सिंह को कुछ समय के लिए जोधपुर का शासन-भार दिया गया था। इसलिए वहाँ के सामन्त इस बात से भयभीत हो रहे थे कि राजा मान सिंह फिर किसी समय यहाँ के सिंहासन पर बैठकर शासन न करने लगे। राजा मानसिंह के शासन से सामन्तों के भयभीत होने का कारण था। राज्य सिंहासन पर बैठकर मानसिंह ने राठौर सामन्तों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था। उनकी जागीरें छीन ली गयी थीं और विद्रोही बनने के लिए उनको विवश किया गया था। इसलिए उन दुर्घटनाओं से राठौर सामन्त आज भी भयभीत होकर अपने भविष्य की ओर देख रहे थे। मारवाड़ की यह अशान्ति लगभग पूरे देश में फैली हुई थी। जिसको दूर करने के लिए कर्नल टॉड ने दिल्ली में राजस्थान के राजपूतों की एक बैठक बुलाई थी।--अनुवादक 1. 1 508
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