सवाई सिंह के जीवन का अंत हो गया। उसने जो कुछ किया था, उसका फल ठीक-ठीक उसे मिला। मानसिंह के जीवन की कठिनाइयों का अभी तक अंत नहीं हुआ। यद्यपि उसने षड़यंत्रकारी अमीर खाँ के द्वारा अपने परम शत्रु सवाई सिंह को संसार से विदा करने में सफलता पायी थी। परन्तु उसकी विपदाओं का अंत यहीं पर नहीं होता। सवाई सिंह और मारवाड़ के विरोधी राठौड़ सामन्तों के प्राणों का नाश करवा कर राजा मानसिंह ने चारों तरफ से निर्भीक होकर अपना शासन-कार्य आरंभ किया। धौकल सिंह के सामने अब कोई आशा वाकी न रह गयी थी। इसलिए निराश होकर वह नागौर से चला गया। जिन राठौर सामन्तों ने धौंकल सिंह का पक्ष लेकर मानसिंह के साथ युद्ध किया था, उनको दंड देने के लिए मानसिंह ने तैयारी की। सवाई सिंह के प्रोत्साहन देने पर जयपुर के राजा जगत सिंह ने मानसिंह के विरुद्ध आक्रमण किया था। इसलिए मानसिंह ने अमीरखाँ की पान सेना के द्वारा जयपुर राज्य के कितने ही नगरों और ग्रामों का भयानक रूप से विध्वंस और विनाश करवाया। मानसिंह का दूसरा शत्रु बीकानेर का राजा था । धौकल सिंह का पक्ष लेकर आरंभ से ही उसने मानसिंह के विरुद्ध राजा जगत सिंह का साथ दिया था और जिस समय कई राज्यों की सेनाओं ने मिल कर जोधपुर पर आक्रमण किया था, उस अवसर का लाभ उठाकर राजा बीकानेर ने फलौदी को बीकानेर के राज्य में मिला लिया था। इसलिए राजा बीकानेर को दंड देने के उद्देश्य से मानसिंह प्रधान सेनापति इन्द्रराज के नेतृत्व में अपनी बारह हजार सेना लेकर बीकानेर राज्य पुर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ। उसके साथ अमीर खाँ और हिन्दाल खाँ की फौजें पैंतीस तोपें लेकर बीकानेर की तरफ चलीं। इस आक्रमण का समाचार राजा बीकानेर को मिला। उसने शीघ्रता के साथ अपनी सेना एकत्रित की और वह बापरी नामक स्थान में पहुँचकर मारवाड़ की सेना का रास्ता देखने लगा। उसी स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं का युद्ध आरंभ हुआ। उस युद्ध में बीकानेर के राजा की पराजय हुई। वह युद्ध क्षेत्र से भाग कर अपनी राजधानी को चला गया। इस लड़ाई में बीकानेर के दो सौ शूरवीर योद्धा मारे गये। युद्ध से उसके भागते ही इन्दराज और अमीर खाँ तथा हिन्दाल खाँ की सेनाओं ने उसका पीछा किया। ये सेनायें पीछा करती हुई गजनेर नामक स्थान पर पहुँच गयी। बीकानेर की सेना संख्या में बहुत कम न होने पर भी मारवाड़ की सेना के साथ युद्ध करने के योग्य न थी। पठानों की सेनाओं के साथ होने के कारण राजा मानसिंह से बीकानेर का राजा अधिक घवरा उठा। उसने भयभीत होकर संधि का प्रस्ताव किया और दो लाख रुपये देना स्वीकार कर लिया। इस सम्पत्ति को लेकर संधि की गयी और उसी समय राजा बीकानेर ने फलोदी नामक स्थान से अपना अधिकार हटा लिया। पठान सेनापति अमीर खाँ ने जगतसिंह का पक्ष लेकर जोधपुर पर आक्रमण किया था। उसके बाद उसने जगत सिंह का विरोधी बनकर जयपुर में आक्रमण करने की तैयारी की और इसके पश्चात् उसने मानसिंह के साथ मित्रता जोड़कर सवाई सिंह तथा उसके सहायक अन्य राठौर सामन्तों का सर्वनाश किया। अमीर खाँ की राजनीति इन दिनो में खूब सफल हुई। उसने जयपुर और जोधपुर से अपरिमित सम्पत्ति अपनी कूट नीति की कीमत में प्राप्त की। जोधपुर पर आक्रमण के दिनों में उसने मारवाड़ के नगरों को लूटकर मनमानी सम्पत्ति अपने अधिकार में कर ली थी। उसके जीवन का उद्देश्य किसी प्रकार धन प्राप्त करना था। सत्य और असत्य एवम् उचित और अनुचित समझने की उसको आवश्यकता न थी। 505
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